25 April 2014

उन्हें बस थोड़ा सा प्यार चाहिए

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कहने को तो वो समाज की रीढ़ हैं, हंसते-खेलते परिवार की नींव है, उनके कंधों पर आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी है लेकिन ना जाने यह कैसी विडंबना है कि जिस समाज को वो अपने आदर्शों, अपने तरीकों और अपनी उम्मीदों से सींचते हैं वहीं समाज एक समय बाद उनकी अवहेलना करने लगता है, उseniorनपर हंसने लगता है, उन्हें महत्व देना भूल जाता है.

एक दौर था जब समाज अपने बुजुर्गों को सिर आंखों पर बैठा कर रखता था, परिवार के भीतर भी उन्हें हर वो आदर-सम्मान दिया जाता था जिसके वो हकदार होते थे, उन्हें सुना जाता था, उनकी बातों का मान रखा जाता था. लेकिन अफसोस पहले जैसी ये परिस्थितियां अब न्यूनतम स्तर पर ही दिखाई देती हैं, यह कहना भी गलत नहीं होगा अब परिवार में बुजुर्ग का सम्मान होते देखना कम से कम आज की युवा पीढ़ी को तो नसीब हो रहा. हर घर के यही हालात है जहां बच्चे अपने ही माता-पिता द्वारा उनके अभिभावकों का असम्मान होते देखते हैं, उनपर चिल्लाते देखते हैं, उन्हें दुत्कारते दिखते हैं.
युवाओं द्वारा बुजुर्गों का अपमान होते देखना आज कोई बड़ी बात नहीं रह गई है, गली-मोहल्लों और घर में भी पीठ-पीछे या उन्हीं के सामने उनका अपमान कर दिया जाता है जिन्होंने कभी हर दुख सहकर अपने परिवार को मुश्किलों से बचाने की कोशिश की थी. घर में अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों और युवाओं के बीच एक और पीढ़ी मौजूद होती हैं वो हैं, जिसके कंधों पर पीढ़ी के इस अंतर को समाप्त कर परिवार में सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी होती हैं लेकिन दुख की बात यह है कि जब अपने ही माता-पिता को लोग बोझ समझने लगते हैं तो सामंजस्य बैठाने की परेशानी भी कोई नहीं उठाना चाहता.

आज अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के दिन हर ओर बुजुर्गों को सम्मान देने जैसी बातें, टी.वी और समाचार पत्रों में उन्हें समर्पित विज्ञापन दिखाई दे जाते हैं, अब जबकि सोशल मीडिया का चलन भी बहुत लोकप्रिय हो गया है तो वहां भी परिवार और आस पड़ोस के बुजुर्गों के प्रति आदरपूर्ण व्यवहार करने से जुड़े स्टेटस और पोस्ट किए जा रहे होंगे लेकिन कल हर कोई, सब कुछ भूलकर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा जिसपर अभी तक चला जाता रहा है.

नहीं जिनको है घुल जाने की चाह

ऐसा नहीं है कि हर परिवार और हर परिस्थितियों में गलती युवाओं या उन लोगों की होती हैं जो अपने वृद्ध हो चुके माता-पिता के साथ बात-बात पर उलझ जाते हैं. कई बार हालात परिवार के बुजुर्गों द्वारा भी बिगड़ जाते हैं लेकिन ऐसे हालातों में उनसे बहस करने की बजाय अगर उनकी कथनी को नजरअंदाज कर दिया जाए तो परिवार में खुशहाली का माहौल कायम रखा जा सकता है.



आप अपने बचपन को ही याद कीजिए, जब आप बीमार होते थे तो किस तरह रातभर आपकी मां आपके बिस्तर के पास ही बैठी रहती थी, आपकी परीक्षाओं के दिनों में वह अपना चैन भूल जाती थी. आपके पिता आपकी एक ख्वाहिश पूरी करने के लिए अपनी दवाइयां तक नहीं लाते थे. उन्होंने वो सब किया जो आपके लिए जरूरी था, किसी भी मुश्किल में आपको अकेला नहीं छोड़ा आपकी हर जरूरत में आपके साथ रहते थे, लेकिन आज जब उन्हें आपकी जरूरत हैं तो आप कैसे उन्हें जीवन के सबसे कठिन पड़ाव में अकेला छोड़ सकते हैं?

आपकी पत्नी आपसे क्या चाहती है?

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पत्नी नई नवेली या बरसों बरस की साथी। अक्सर किसी पहेली से कम नहीं होती। समझ में नहीं आता उसे क्या अच्छा लगता है, कब अच्छा लगता है, कब बुरा लगता है और कब वह कुछ खास आपसे सुनना या पाना चाहती है। आइए जानते हैं इस प्रश्नावली के माध्यम से कि आखिर आप अपनी पत्नी को कितना जानते हैं? 

1-आपकी पत्नी आपसे क्या चाहती है?
क. ढेर सारे उपहार
ख. दांपत्य जीवन के प्रति प्रतिबद्धता
ग. आप उसे पहले नंबर की प्राथमिकता दें

2- आपकी पत्नी चाहती है कि आप-
क. उसके ड्यूटी आने से पहले घर के कामकाज शुरू कर दें
ख. उसका इंतजार करें
ग. यह उसकी ड्यूटी है यह मानें

3- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसके साथ भावुक क्षणों में हों
ख. आप उसे ऐसे क्षणों में अकेला छोड़ दें
ग. आप अपने में मस्त रहें

4- आपकी पत्नी चाहती है कि आप उसे-
क. उपहार में रसोई की चीजें दें
ख. कपड़े और गहने दें
ग. यादगार चीजें दें जिन पर औरतों की पारंपरिक छवि न जुड़ी हो

5- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसे जींस में मोटी न कहें
ख. आप उसे मनपसंद कपड़े पहनने दें
ग. आप अपने मन के कपड़े पहनाएं

6- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसे जानें
ख. बच्चों से ज्यादा उसका खयाल रखें
ग. आप उससे अंतरंग हों

7- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप बच्चों के प्रति जिम्मेदार बनें
ख. बच्चों से ज्यादा उसका खयाल रखें


ग. पूरे परिवार के लिए अपना खयाल रखें

जीवन जीने की कला

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मनुष्य  हमेशा अपने भविष्य के लिए चिंतित रहता है।  वह  अतीत की सोचता है, भविष्य की सोचता है, क्योंकि डरता है वर्तमान से , वर्तमान के क्षण में जीवन भी है और मृत्यु भी। वर्तमान में ही दोनों है एक साथ है क्योंकि वह वर्तमान में ही मरेगा  और वर्तमान में ही जियेगा । न तो कोई भविष्य में मर सकता है और न भविष्य में जी सकता है।
क्या तुम भविष्य में मर सकते हो?  जब मरोगे, तब अभी और यहीं, वर्तमान के क्षण में ही मरोगे। आज ही मरोगे। कल तो कोई भी नहीं मरता। कल मरोगे भी तो कैसे?  कल क्या आता है कभी?  कल तो आता ही नहीं है। जब मर नहीं सकते कल में तो जियोगे कैसे?  कल का कोई आगमन ही नहीं होता। कल तो है ही नहीं। जो है वह अभी है और यहाँ है हमारे वर्तमान में , फिर कल की बात ही क्यों ? लेकिन फिर भी वह भविष्य में ही जीना चाहता है, भविष्य के लिए ही चिंतित है ; जबकि सत्य यही है की वह वर्तमान में जी रहा है।
हमें अपने अतीत से  प्रेरणा लेनी चाहिए , भविष्य की योजनाएं बनाना चाहिए एवं वर्तमान का आनंद लेना चाहिए।  हम वर्तमान में जी रहे हैं इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही हमें जीवन जीने की कला सीखा सकता है।  अतीत की भटकन से दूर , भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है , उसके लिए जिज्ञासा न कर , वर्तमान को आनन्दमय बनाये।  यही है जीवन जीने की कला।

रिश्ते अपनी जगह अनमोल हैं.

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जिंदगी की दौड़ में रिश्ते एनर्जी बूस्टर्स से कम नहीं. हर रिश्ते अपनी जगह अनमोल हैं. कुछ अनमोल कहलाने से भी कहीं ज्यादा खास होते हैं. मां-बाप, दादा-दादी, बूआ-मासी, चाचा-चाची जैसे ये रिश्ते बचपन की गली से आगे बढ़ने के बाद भी हमेशा खास होते हैं क्योंकि जिंदगी की जंग में आगे बढ़ पाने के लिए अंगुली थामकर मजबूत कदमों से चलना यही सिखाते हैं हमें. उस बचपन में जब हम उन्हें अपने लिए तकलीफें उठाते, हमारी खुशियों के लिए अपनी छोटी-बड़ी खुशियां कुर्बान करते फिर भी हमारे लिए खुश होते देखते हैं तो अक्सर हम सोचते हैं कि बड़े होकर हम इनकी झोली ढेर सारी खुशियों से भर देंगे. हर वो पल उन्होंने हमारी खुशी के लिए कुर्बान किए उससे दोगुने खुशनुमा पल उनके कदमों में रख देंगे लेकिन भीड़ में आगे बढ़ सकने की धुन में जब वक्त आता है उनके लिए कुछ करने का तो हम क्या करते हैं? शायद ऐसा ही जो इस वीडियो में दिखाया गया है:

जो बोवोगे वही पाओगे. क्या हम अपनी भावी पीढ़ी को यही सीख देना चाहते हैं? कल यही हमारा अतीत भी होगा और आज यह अतीत कल का हमारा भविष्य भी बनेगा. क्या आप अपना ऐसा भविष्य देखना चाहेंगे? अगर नहीं, तो अपनी खुशियों से इनके लिए हम थोड़ा वक्त क्यों नहीं निकाल सकते? सवाल खुद से पूछिए.

एक मासूम कहानी..(Sad Story in Hindi)

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एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका-हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका छोटा सा बेटा सोने की बजाय उसका इंतज़ार कर रहा है . अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?” “ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा . बेटा – “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?” “ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया . बेटा – “ मैं बस यूँ ही जाननाचाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , नहीं बताऊंगा , तुम जाकर सो जाओ “यह सुन बेटा दुखी हो गया …और वह अपने कमरे में चला गया . व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे ने ऐसा क्यों पूछा ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “ क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया . “ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया।

जब पत्नी ने कहा पति से ‘अभी घर जाने का करो इंतजार


दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा. सारी बेटा “…….मै एक घंटे में १०० रूपया कमा लेता हूँ……. थैंक यूं पापा ” बेटे ने ख़ुशी से बोला और तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने अपने गोल्लक तोड़े और ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा . “ पापा मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपसे आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .” दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा अहमयित रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी भरी जिंदगी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया…

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