17 February 2013

स्त्रियां तय कर लें तो कभी युद्ध ना हो

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स्त्रियां तय कर लें तो कभी युद्ध ना हो

स्त्री को अपनी मुक्ति के लिए अपने व्यक्तित्व को खड़ा करने की दिशा में सोचना चाहिए। प्रयोग करने चाहिए। लेकिन ज्यादा से ज्यादा वह क्लब बना लेती है, जहां ताश खेल लेती है, कपड़ों की बात कर लेती है, फिल्मों की बात कर लेती है, चाय-कॉफी पी लेती है, पिकनिक कर लेती है और समझती है कि बहुत है, शिक्षित होना पूरा हो गया। ताश खेल लेती होगी। पुरुषों की नकल में दो पैसे जुए के दांव पर लगा लेती होगी बाकी इससे उसको कुछ व्यक्तित्व नहीं मिलने वाला है।

स्त्री को भी सृजन के मार्गों पर जाना पड़ेगा। उसे भी निर्माण की दिशाएं खोजनी पड़ेंगी। जीवन को ज्यादा सुंदर और सुखद बनाने के लिए उसे भी अनुदान करना पड़ेगा; तभी स्त्री का मान, स्त्री का सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा है। वह समकक्ष आ सकती है।

स्त्री को एक और तरह की ‍'शिक्षा' चाहिए, जो उसे संगीतपूर्ण व्यक्तित्व दे, जो उसे नृत्यपूर्ण व्यक्तित्व दे, जो उसे प्रतीक्षा की अनंत क्षमता दे, जो उसे मौन की, चुप होने की, अनाक्रामक होने की, प्रेमी की और करुणा की गहरी शिक्षा दे। यह शिक्षा अनिवार्य रूपेण 'ध्यान' है।

स्त्री को पहले दफा यह सोचना है क्या स्त्री भी एक नई संस्कृति को जन्म देने के आधार रख सकती है? कोई संस्कृति जहां युद्ध और हिंसा नहीं। कोई संस्कृति जहां प्रेम, सहानुभूति और दया हो। कोई संस्कृति जो विजय के लिए आतुर न हो- जीने के लिए आतुर हो। जीने की आतुरता हो। जीवन को जीने की कला और जीवन को शान्ति से जीने की आस्था और निष्ठा पर खड़ी हो- यह संस्कृति- स्त्री जन्म दे सकती है- स्त्री जरूर जन्म दे सकती है।

आज तक चाहे युद्ध में कोई कितना ही मरा हो, स्त्री का मन निरंतर-प्राण उसके दुख से भरे रहे। उसका भाई मरता है, उसका बेटा मरता है, उसका बाप मरता है, पति मरता है, प्रेमी मरता है। स्त्री का कोई न कोई युद्ध में जा के मरता है।

अगर सारी दुनिया की स्त्रियां एक बार तय कर लें- युद्ध नहीं होगा; दुनिया पर कोई राजनैतिक युद्ध में कभी किसी को नही घसीट सकता। सिर्फ स्त्रियां तय कर लें; युद्ध अभी नहीं होगा- तो नहीं हो सकता। क्योंकि कौन जाएगा युद्ध पर? कोई बेटा जाता है, कोई पति जाता है, कोई बाप जाता है। स्त्रियां एक बार तय कर लें।

लेकिन स्त्रियां पागल हैं। युद्ध होता है तो टीका करती हैं कि जाओ युद्ध पर। पाकिस्तानी मां, पाकिस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ युद्ध पर। हिन्दुस्तानी मां, हिन्दुस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ बेटे; युद्ध पर जाओ।

पता चलता है कि स्त्री को कुछ पता नहीं कि यह क्या हो रहा है। वह पुरुष के पूरे जाल में सिर्फ एक खिलौना बन हर जगह एक खिलौना बन जाती है। चाहे पाकिस्तानी बेटा मरता हो, चाहे हिन्दुस्तानी; किसी मां का बेटा मरता है। यह स्त्री को समझना होगा। रूस का पति मरता हो चाहे अमेरिका का। स्त्री को समझना होगा, उसका पति मरता है। अगर सारी दुनिया की स्‍ित्रयों को एक ख्याल पैदा हो जाए कि आज हमें अपने पति को, बेटे को, अपने बाप को युद्ध पर नहीं भेजना है, तो फिर पुरुष की लाख कोशिश पर राजनैतिकों की हर कोशिशें व्यर्थ हो सकती हैं, युद्ध नहीं हो सकता है।

यह स्त्री की इतनी बड़ी शक्ति है, वह उसके ऊपर सोचती है कभी? उसने कभी कोई आवाज नहीं की। उसने कभी कोई फिक्र नहीं की। उस आदमी ने- पुरुष ने- जो रेखाएं खींची हैं राष्ट्रों की, उनको वह मान लेती है। प्रेम कोई रेखाएं नहीं मान सकता। हिंसा रेखाएं मानती है, क्योंकि जहां प्रेम है, वहां सीमा नहीं होती। सारी दुनिया की स्‍ित्रयों को एक तो बुनियादी यह खयाल जाग जाना चाहिए कि हम एक नई संस्कृति को, एक नए समाज को, एक नई सभ्यता को जन्म दे सकती हैं। जो पुरुष का आधार है उसके ठीक विपरीत आधार रखकर...

यह स्त्री कर सकती है। और स्त्री सजग हो, कॉन्शियस हो, जागे तो कोई भी कठिनाई नहीं। एक क्रांति- बड़ी से बड़ी क्रांति दुनिया में स्त्री को लानी है। वह यह 'एक प्रेम पर आधारित' देने वाली संस्कृति, जो मांगती नहीं, इकट्ठा नहीं करती, देती है, ऐसी एक संस्कृति, निर्मित करनी है। ऐसी संस्कृ‍‍ति के निर्माण के लिए जो भी किया जा सके वह सब। उस सबसे बड़ा धर्म स्त्री के सामने आज कोई और नहीं। यह पुरुष के संसार को बदल देना है आमूल।

शायद पुरानी पीढ़ी नहीं कर सकेगी। नई पीढ़ी की लड़कियां कुछ अगर हिम्मत जुटाएंगी और फिर पुरुष होने की नकल और बेवकूफी में नहीं पड़ेंगी तो यह क्रांति निश्चित हो सकती है।...
 : ओशो

इच्छा जागी

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जब आपके मन में प्रभु का नाम लेने की इच्छा जागी.. संतों के दर्शन की इच्छा जागी.. तीर्थों के सेवन की इच्छा जागी.. अनायास ही.. तो वो इच्छा पहले भगवंत और संत के मन में जागी कि वो आपको अपने पास बुलाएँ.. जब ऐसा हो कि आपको नाम जपने का अचानक से मन करे.. संतों से मिलने की इच्छा हो तो बस उधर कदम बढा दो .. यात्रा बड़ी सुगम होगी क्योंकि आपको कुछ करना ही नहीं होगा सारा इंतेज़ाम पहले ही हो चुका होता है..

संसारमें रहकर साधनारत होना न धर्म विरुद्ध है

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संसारमें रहकर साधनारत होना न धर्म विरुद्ध है, न शास्त्र विरुद्ध, मात्र ऐसे जीवकी अपने ध्येयसे भटकनेकी संभावना अधिक होती है | अतः गृहस्थने गुरुगृह, अर्थात आश्रममें जाकर थोड़े समय साधना करना चाहिए, प्रतिदिन
थोड़े समय एकांत रहकर अपनी साधनकी समीक्षा करनी चाहिए और यथा शक्ति धर्मकार्य में योगदान देना चाहिए, यह सब करनेसे आत्मनियंत्रणकी प्रक्रिया को गति मिलती है | जो सांसारिक होते हुए आध्यात्मिक प्रगति कर इस भवसागरको पार करता है ऐसे सदगृहस्थको संतोंने नायक (हीरो) की उपाधि दी है |


Being in the world and doing Sadhana is neither against Dharma (righteous conduct), nor against the scriptures; only it carries a possibility of such a being getting diverted from the ultimate goal. Thus, a householder must go to Guru’s ashram, meaning hermitage and do Sadhana for some time. Also one should live in solitude for sometime of the day, one must perform Sadhana everyday and analyse the their Sadhana, as well as contribute one’s mite as per in some divine work; doing all this, provides momentum to the process of self-control. Despite being worldly, those who cross this Bhavsagar (vicious cycle of life and death) and make spiritual progress, such pure householders have been given the title of Heroes) by saints.

रोजगार संबधी बाधा खत्म हो जाएगी

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यदि दुकान न चलने से आप परेशान है l तो निम्नलिखित उपाए करे l दुकान के दोनों तरफ हल्दी का स्वास्तिक बनाये व नौकर के हाथ से रोजगार के दरवाजे में पीला कपडा बिछाकर उस पर 300 ग्राम गुड , 300 ग्राम चने की दाल, 300 ग्राम काले तिल, 300 ग्राम काले उड़द साबुत, 8 बड़ी कील, 8 सिक्के इन सबको पीले कपडे मे बांधकर पूरी दुकान या फैक्ट्री मे घुमाए तथा एक पानी वाला नारियल मुख्य दरवार पर नौकर से तुडवाये l उसके पानी को किसी बर्तन मे लेकर दुकान या फैक्ट्री स्थल पर छिडके व नारियल गरी तथा पीले कपडे का सारा सामान बहते पानी मे प्रवाहित कर दे l उपर वाले की कृपा से रोजगार संबधी बाधा खत्म हो जाएगी l कृपा प्रयाप्त होने के बाद हनुमान जी मंदिर में प्रशाद अवश्य चढ़ाएं।

Cow

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‘सर्व देवा स्थिता देहे सर्व देवामिहि गौ’
“SARVE DEVAAH STHITA DEHE SARVA DEVAMAYEEHI GAOU”

The above shloka means that all the deities dwell in the body of a cow. Therefore the cow itself is as holier
, as the deities.
The cow symbolizes the dharma itself. It is said to have stood steadily upon the earth with its four feet during the Satyug (world’s first age of truth), upon three feet during the Tretayug (the second stage of less than perfection), upon two feet during the Dwaparyug (the third stage of dwindling and disappearing perfection) and only on one leg during Kaliyug (the fourth and current age of decadence)
The name for cow in the Vedas is known asaghyna which means invioable.
Another name is “ahi” which means not to be killed and another is “aditi” which means never to be cut into pieces.
Photo: Cow , the epitome of vedic sanskruti !
‘सर्व देवा स्थिता देहे सर्व देवामिहि गौ’
“SARVE DEVAAH STHITA DEHE SARVA DEVAMAYEEHI GAOU”

The above shloka means that all the deities dwell in the body of a cow. Therefore the cow itself is as holier
, as the deities.
The cow symbolizes the dharma itself. It is said to have stood steadily upon the earth with its four feet during the Satyug (world’s first age of truth), upon three feet during the Tretayug (the second stage of less than perfection), upon two feet during the Dwaparyug (the third stage of dwindling and disappearing perfection) and only on one leg during Kaliyug (the fourth and current age of decadence)
The name for cow in the Vedas is known asaghyna which means invioable.
Another name is “ahi” which means not to be killed and another is “aditi” which means never to be cut into pieces.

साक्षीभाव

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" हर घड़ी, चाहे सुख हो, चाहे दुःख, एक ही चीज़ पाने योग्य है और वह है - साक्षीभाव! जागो और देखो! जोड़ो मत अपने को! अगर तुमने बाहर की चीज़ों से अपने को न जोड़ा, तो तुम भीतर के जगत में जुड़ जाओगे, उसी का नाम योग है। "

~ ओशो
Photo: " हर घड़ी, चाहे सुख हो, चाहे दुःख, एक ही चीज़ पाने योग्य है और वह है - साक्षीभाव! जागो और देखो! जोड़ो मत अपने को! अगर तुमने बाहर की चीज़ों से अपने को न जोड़ा, तो तुम भीतर के जगत में जुड़ जाओगे, उसी का नाम योग है। "

~ ओशो

मॉडल लड़की से प्रेम

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एक किसान का बेटा मुंबई पढने चला गया वहा उसको मॉडल लड़की से प्रेम हो गया जो पूरी तरह से वेस्टर्न संस्कृति में लिपि पुती थी कुछ दिनों के बाद लड़के को एहसास हो गया की यो मेल न हो सकता और उसने लड़की को पत्र लिखा ..
ओ कंप्यूटर युग की छोरी मन की काली तन की गोरी
करना मुझको माफ़ मैं तुम्हे प्यार नही करपाउँगा
तू फैशन tv सी लगती मैं संस्कार काचेनल हूँ
तू मिनरल पानी की बोतल लगती है मैं गंगा का पावन जल हू
तुम लाखो की गाड़ी में चलने वाली मैं पाव पाव चलने वाला
तुम हलोजन सी जलती हो मैं दीपक सा जलने वाला
करना मुझको माफ़ मैं तुम्हे प्यार नही कर पाउँगा
तुम रैंप पर देह दिखाती हो मैं संस्कार को जीता हू
जब तुम्हे देख कर सिटी बजती मैं घुट लहू का पीता हूँ
तुम सूप पीने वाली मैं मैठा पीने वाला
तुम शॉक अलार्म से भी ना डरो मैं पॉपकॉर्न से डरने वाला
तुम डिस्को की धुन पर नाचो मैं राम नाम ही जबता हूँ
तुम पीता जी को डैड और टेलीफोन को भी डैड
कहो और माँ को मम्मी(mummy) बुलाती हो
तुम करवा चौथ भूल बैठी और वेलन टाइम डे मनाती हो
तुम पॉप म्यूजिक की धुन सी बजती मैं बंसी की धुन का धनिया
मुझ से डॉट कॉम भी ना लगती तुम इंटरनेटी दुनिया
तुम मोबाइल पर मेसेज लिखने वाली मैं पोस्टकार्ड लिखने वाला
तुम राकेट सी लगती हो और मैं उड़ने वाला गुब्बारा सा
तू अपना सब कुछ हार चुकी मैं जीता हुआ जुआरी हूँ
तुम इटली की रानी जैसी मैं देसी अटल बिहारी हूँ

विज्ञान और धर्म

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इस छोटी सी कथा में एक बहुत बड़ा सन्देश है। गीता एक छोटी सी पुस्तक नही बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय ग्रन्थ है। यह सभी धर्मों से उपर उठकर मानवता को एक विशेष सन्देश देती है।

ब्रिटेन के वैज्ञानिक डॉ. हाल्डेन ने सन् 1922 ई. में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाओं पर अनुसंधान कर पूरे संसार में ख्याति प्राप्त की। इस अनुसंधान के बाद उन्होंने सोचा कि अब धर्म और आध्यात्मिक रहस्यों का अध्ययन किया जाए।

उन्होंने अनेक हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन कर डाला। फिर वह गीता पढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह गीता का एकाग्रता से मनन करते गए वैसे-वैसे उनका मोह भौतिक वस्तुओं से हटता गया और उन्हें अहसास हो गया कि भौतिकवादी साधनों से कभी भी मानव को सच्ची शांति व सुख प्राप्त नहीं हो सकता।

सन् 1951 में वह अपनी पत्नी के साथ भारत आए। यहां घूमते हुए वह भुवनेश्वर पहुंचे। वहां अनेक धर्म प्रचारक भी मौजूद थे। अचानक ब्रिटेन के एक धर्म प्रचारक ने उनसे पूछा, 'आप एक अंग्रेज होते हुए भी गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ क्यों मानते हैं? क्या आपकी नजरों में गीता से बेहतर और कोई ग्रंथ नहीं है?'

ब्रिटेन के धर्म प्रचारक की बात सुनकर डॉ हाल्डेन बोले, 'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'

ब्रिटेन के धर्म प्रचारक डॉ. हाल्डेन की यह बात सुनकर चुप हो गए।

Repeat कर रहे हैं क्योंकि बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द हैं।
'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

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