24 January 2013

कम्प्यूटर पर ज्यादा बैठते हैं तो कीजिए ये एक्सरसाइज

www.goswamirishta.com दिनभर कम्प्यूटर के सामने बैठे-बैठे हाथ-पैर, आंखे और पूरे शरीर की बुरी हालत हो जाती है। वैसे तो यह सब सामान्य बात ही नजर आती है परंतु इसका हमारे शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। दिनभर कम्प्यूटर पर कार्य करने वाले अधिकांश लोगों में एक समय बाद चिड़चिड़ापन आ जाता है और वे मानसिक तनाव भी झेलते हैं। जिससे उनका पारिवारिक जीवन और कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। समय रहते इस तनाव को दूर करने का उपाय कर लिया जाए तो आप भी हमेशा खुश और स्वस्थ रह सकते हैं। आपकी आंखों की रोशनी हमेशा चमकती रहेगी और चश्मों आदि से निजात मिलेगी। यह एक्सरसाइज करें - कम्प्यूटर पर कार्य करने वाले लोगों की आंखों पर सबसे अधिक दबाव पड़ता है। इसलिए आंखों की सुरक्षा के लिए आंखों की पुतलियों को दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाए। फिर गोल-गोल घुमाएं। इससे आंखों की रोशनी बढ़ेगी और आंखों को ठंडक मिलेगी। - बैठे-बैठे पीठ दर्द करने लगती है तो इस दर्द को दूर करने के लिए दोनों हाथों से कोहनियां से मोडि़ए और दोनों हाथों की अंगुलियों को कंधे पर रखें। अब दोनों हाथों की कोहनियों को मिलाते हुए और सांस भरते हुए कोहनियों को सामने से ऊपर की ओर ले जाएं। कोहनियों को घुमाते हुए नीचे की ओर सांस छोड़ते हुए ले जाएं। कोहनियों को विपरीत दिशा में भी घुमाइए। - गर्दन दर्द से बचने के लिए गर्दन को दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाएं। गोल-गोल घुमाए। इससे आपकी गर्दन का दर्द ठीक हो जाएगा। यह क्रियाएं प्रतिदिन करने पर कुछ ही दिनों में आप मानसिक तनाव से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे और फिर अच्छे से कार्य कर सकेंगे।

यहां है आधा शिव आधा पार्वती रूप शिवलिंग

www.goswamirishta.com धार्मिक दृष्टि से पूरा संसार ही शिव का रुप है। इसलिए शिव के अलग-अलग अद्भुत स्वरुपों के मंदिर और देवालय हर जगह पाए जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर स्थित है - हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित काठगढ़ महादेव। इस मंदिर का शिवलिंग ऐसे स्वरुप के लिए प्रसिद्ध है, जो संभवत: किसी ओर शिव मंदिर में नहीं दिखाई देता। इसलिए काठगढ़ महादेव संसार में एकमात्र शिवलिंग माने जाते हैं, जो आधा शंकर और आधा पार्वती का रुप लिए हुए है। यानि एक शिवलिंग में दो भाग हैं। इसमें भगवान शंकर के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के साक्षात दर्शन होते हैं। शिव रुप का भाग लगभग ७ फुट और पार्वती रुप का शिवलिंग का हिस्सा थोड़ा छोटा होकर करीब ६ फुट का है। इस शिवलिंग की गोलाई लगभग ५ फिट है। शिव और शक्ति का दोनों के सामूहिक रुप के शिवलिंग दर्शन से जीवन से पारिवारिक और मानसिक दु:खों का अंत हो जाता है। शिवपुराण की कथा अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु के बीच बड़े और श्रेष्ठ होने की बात पर विवाद हुआ, तब बहुत तेज प्रकाश के साथ एक ज्योर्तिलिंग प्रगट हुआ। अचंभित विष्णु और ब्रह्मदेव उस ज्योर्तिलिंग का आरंभ और अंत नहीं खोज पाए। किंतु ब्रह्मदेव ने अहं के कारण यह झूठा दावा किया कि उनको अंत और आरंभ पता है। तब शिव ने प्रगट होकर ब्रह्म देव की निंदा की और दोनों देवों को समान बताया। माना जाता है कि वही ज्योर्तिमय शिवलिंग ही काठगढ़ का शिवलिंग है। चूंकि शिव का वह दिव्य लिंग शिवरात्रि को प्रगट हुआ था, इसलिए लोक मान्यता है कि काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि का दिन इनका मिलन माना जाता है। काठगढ़ में सावन माह और महाशिवरात्रि के दिन विशेष शिव पूजा और धार्मिक आयोजन होते हैं। इसलिए इस समय काठगढ़ की यात्रा सबसे अच्छा मानी जाती है। काठगढ़ शिवलिंग दर्शन के लिए पहुंचने का मुख्य मार्ग पंजाब का पठानकोट और हिमाचल प्रदेश के इंदौरा तहसील से है। जहां से काठगढ़ की दूरी लगभग ६ से ७ किलोमीटर है।

कहां होता है शिवलिंग में शिव मुख ?

www.goswamirishta.com शिवलिंग पूजा मन से कलह को मिटाकर जीवन में हर सुख और खुशियाँ देने वाली मानी गई है। हर देव पूजा के समान शिवलिंग पूजा में भी श्रद्धा और आस्था महत्व रखती है। किंतु इसके साथ शास्त्रोंक्त नियम-विधान अनुसार शिवलिंग पूजा शुभ फल देने वाली मानी गई है। इन नियमों में एक है शिवलिंग पूजा के समय भक्त का बैठने की दिशा। जानते हैं शिवलिंग पूजा के समय किस दिशा और स्थान पर बैठना कामनाओं को पूरा करने की दृष्टि से विशेष फलदायी है। - जहां शिवलिंग स्थापित हो, उससे पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके नहीं बैठना चाहिये। क्योंकि यह दिशा भगवान शिव के आगे या सामने होती है और धार्मिक दृष्टि से देव मूर्ति या प्रतिमा का सामना या रोक ठीक नहीं होती। - शिवलिंग से उत्तर दिशा में भी न बैठे। क्योंकि इस दिशा में भगवान शंकर का बायां अंग माना जाता है, जो शक्तिरुपा देवी उमा का स्थान है। - पूजा के दौरान शिवलिंग से पश्चिम दिशा की ओर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि वह भगवान शंकर की पीठ मानी जाती है। इसलिए पीछे से देवपूजा करना शुभ फल नहीं देती। - इस प्रकार एक दिशा बचती है - वह है दक्षिण दिशा। इस दिशा में बैठकर पूजा फल और इच्छापूर्ति की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाती है। सरल अर्थ में शिवलिंग के दक्षिण दिशा की ओर बैठकर यानि उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पूजा और अभिषेक शीघ्र फल देने वाला माना गया है। इसलिए उज्जैन के दक्षिणामुखी महाकाल और अन्य दक्षिणमुखी शिवलिंग पूजा का बहुत धार्मिक महत्व है। शिवलिंग पूजा में सही दिशा में बैठक के साथ ही भक्त को भस्म का त्रिपुण्ड़् लगाना, रुद्राक्ष की माला पहनना और बिल्वपत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए। अगर भस्म उपलब्ध न हो तो मिट्टी से भी मस्तक पर त्रिपुण्ड्र लगाने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।

आरोग्य देता है शिव-सूर्य पूजन

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श्रावण कृष्ण सप्तमी तिथि सूर्य को समर्पित है अत: सप्तमी को सूर्य के रूप में भगवान शंकर का पूजन विधि-विधान से करने पर तेज की प्राप्ति होती है। इस दिन प्रात:काल सूर्य को जल चढ़ाने से आरोग्य तो मिलता ही है साथ ही इसके निरंतर करने से आंखों एवं सिरदर्द का निदान भी होता है। इस दिन तांबे से निर्मित वस्तुओं का दान करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। 

इस दिन शीतला सप्तमी का व्रत भी महिलाओं द्वारा किया जाता है। महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य की इच्छा से करती है। इस दिन शीतलामाता की पूजा शीतल सामग्री से की जाती है। इस दिन घरों में चुल्हा भी नहीं जलाया जाता।

विवाह में सात फेरे ही क्यों?

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इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है। जब दो इंसान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। हर परिस्थिति में एक - दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है। संकल्प या वचन सदैव देव स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है। इसीलिये विवाह के साथ फेरे और वचन अग्रि के सामने लिये जाते हैं। फेरे सात ही क्यों लिये जाते हैं इसका कारण सात अंक की महत्ता के कारण होता है। शास्त्रों में सात की बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है। तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दुल्हा आगे रहता है। किन्तु फिर भी आजकल विवाह में सात फेरों का ही अधिक प्रचलन है। हमारी संस्कृति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का कितना महत्व है आइये जाने.....



- सूर्य प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात।

- संगीत में स्वरों की संख्या की संख्या भी सात: सा, रे, गा, मा, प , ध, नि।

- पृथ्वी के समान ही लोकों की संख्या भी सात: भू, भु:, स्व: मह:, जन, तप और सत्य। 

- सात ही तरह के पाताल: अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। 

- द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है।

- प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं: गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि जो कि शुद्ध माने जाते हैं।

- प्रमुख क्रियाएं भी सात ही हैं: शौच, मुखशुद्धी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा।

पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात ही है: ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्रि तथा अतिथि।

- इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात: ईष्र्या, का्रोध, मोह, द्वेष, लोभ, घृणा तथा कुविचार।

- वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान: मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्रि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान, और मानसिक स्नान।



7- अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों, विद्वानों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों तथा सात वचनों को शामिल किया है। अपने परिजनों, संबधियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हुए सात वचनों को निभाने का प्रण करते हैं यानि कि संकल्प करते हैं। मन ही मन ईश्वर से कामना करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो। हर दिन उसमें संगीत के सातों स्वरों का माधुर्य हो। जीवन में सातों रंगों का प्रकाश फै ले। दोनों एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारीख्याती सातों लोकों में सदैव बनी रहे

वैवाहिक जीवन खुशनुमा बनाएं योग से

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अधिकांश विवाहित युगलों के मध्य छोटे-छोटे झगड़े तो सामान्य सी बात है परंतु कई बार यही छोटे-छोटे झगड़े बढ़ जाते हैं और दोनों का जीवन परेशानियों से घिर जाता है।

सामान्यत: इन झगड़ों की वजह आपसी तालमेल की कमी ही होती है। तालमेल की कमी दोनों की व्यस्तता की परिणाम है। पति ऑफिस और बाहर के कार्यों में इतना उलझा रहता है कि घर आते-आते अत्यधिक मानसिक तनाव महसूस करने लगता है। पत्नी घर के कार्यों में उलझी रहती है। यदि पति-पत्नी दोनों जॉब करते हैं तो सामान्यत: उनके बीच झगड़े अधिक होते हैं।

इन झगड़ों से कैसे बचें...

वैसे तो इन झगड़ों से बचने के कई उपाय हैं और सभी उन पर अमल भी करते हैं। इन सभी उपायों के अतिरिक्त एक और रास्ता है योग। योगासन का महत्व सभी अच्छे जानते ही हैं।

- प्रतिदिन योग करने से दिनभर मन शांत रहता है।

- कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। 

- दिनभर शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।

- स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है।

- मन शांत रहेगा तो आप अपने जीवन साथी के साथ अच्छा सामंजस्य बना सकेंगे।

- क्रोध ही कई झगड़ों की वजह होता है। योग क्रोध को नियंत्रित करता है।

जवानी में सफेद बाल और रूसी, नाखुन रगड़ो

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आज अधिकांश युवाओं को सफेद बाल की समस्या परेशान कर रही है। असमय सफेद बाल से बचने के लिए युवा कई तरह के जतन करते हैं। कई दवाइयां, शैम्पू आदि का प्रयोग करते हैं। काफी पैसा लगाने के बाद भी बाल सफेद होने से नहीं रोक पाते। बालों को सफेद होने से रोकने के लिए एक बहुत सरल क्रिया है हाथों के नाखुन रगडऩा।

नाखुन रगडऩे से बाल काले क्यों रहते हैं...

नाखुन रगडऩे से बाल काले रहते हैं क्योंकि हमारे हाथों के नाखुन के नीचे जो ग्रंथियां और नसें हैं, उनका संबंध बालों से है। लगातार नाखुन रगडऩे से इन ग्रंथियां एक्टिव रहती है और बालों को सफेद होने से रोकती है।

- यह क्रिया काफी फायदेमंद हैं और इससे बहुत जल्द बाल सफेद होने पर रोक लग जाती है।

- इस क्रिया को आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं।

- इस क्रिया के लिए समय आदि का कोई बंधन नहीं है।

- आपको जहां समय मिले इस क्रिया को कर सकते हैं।

- इस क्रिया से बालों से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

- बालों से रूसी दूर हो जाती है।

कैसे रगड़े नाखुन...

नाखुन रगडऩे के लिए अपने दोनों को समान रूप से आमने-सामने रखकर अंगुलियों को अंदर की मोड़ें। अब दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर रगडऩा शुरू करें। यह क्रिया कभी भी की जा सकती है। इस क्रिया को कम से कम पांच मिनिट तक अवश्य करें। इसका नियमित अभ्यास आपके बालों को असमय सफेद होने से रोकेगा।

सावधानी...

इस क्रिया को आराम से करें। ज्यादा तेजी से नाखुन ना रगड़ें। नाखुन पर अत्यधिक दबाव भी ना बनाएं। ध्यान रहे नाखुनों से अंगुलियों की त्वचा को कोई नुकसान ना पहुंचे।

दुकान में वास्तु

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दुकान आपके आय का मुख्य स्त्रोत होती है अत: इसका वास्तु सम्मत होना अतिआवश्यक है। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखें-

1- दुकान में सदैव पूजा स्थल ईशान कोण में ही बनवाएं।

2- अलमारी या फर्नीचर दुकान के दक्षिण-पश्चिम भाग में और स्वामी को उत्तराभिमुख होकर बैठना चाहिए। ऐसा संभव न हो तो दक्षिण-पश्चिम या पूर्वाभिमुख होकर भी बैठ सकते हैं। 

3- अग्नि संबंधी उपकरण जैसे- विद्युत का मीटर, जनरेटर, इन्वर्टर आदि आग्नेय कोण में ही स्थापित करवाएं।

4- दुकान में पीने के पानी की व्यवस्था उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम में करनी चाहिए।

5- उत्तर क्षेत्र कुबेर का स्थान माना जाता है जो कि धन वृद्धि के लिए शुभ है। यदि कोई व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोई बड़ा सौदा करें तो मुख उत्तर की ओर रखें। इससे व्यापार में काफी लाभ होता है। 

6- व्यापारियों को कैश बॉक्स और महत्वपूर्ण कागज चैक-बुक आदि दाहिनी ओर रखना चाहिए। 

इन उपायों से धन लाभ तो होता ही है साथ ही समाज में मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।

क्यों पीया था शिव ने कालकूट विष?

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देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कण्ठ में धारण किया था। विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया और वे नीलकण्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।


विद्वानों का मत है कि समुद्र मंथन एक प्रतीकात्मक घटना है। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं उन्हें मथकर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना। हम जब अपने मन से विचारों को निकालेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार निकलेंगे।


यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कण्ठ में धारण किया। उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पान हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। हमें बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए।


शिव द्वारा विष पान हमें यह सीख भी देता है कि यदि कोइ बुराई पैदा हो रही हो तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने देना चाहिए।

गालव के मृत पिता को जीवित कर दिया शिव ने

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महर्षि गालव महामुनि विश्वामित्र के प्रिय शिष्य थे। जब वे सभी विद्याओं में पारंगत हो गए तब गुरु की आज्ञा से अपने पिता के दर्शन हेतु अपने घर को चले। जब वे अपने घर पहुंचे तो उनकी माता ने उन्हें उनके पिता की मृत्यु की सूचना दी। वे अत्यन्त दुखी हुए और गुरु का ध्यान कर पिता के दर्शन का उपाय ढूढ़ऩे लगे।


अचानक उन्हें शिव का ध्यान आया। वे अपनी माता की अनुमति लेकर योगसाधना द्वारा शिवजी की स्तुति करने लगे।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उनसे वर मांगने को कहा। उन्होंने अपने पिता के दर्शनों का वर मांगा। शिवजी ने उन्हें वर दिया और आज्ञा दी कि वे तुरन्त घर वापस जाएं और अपने पिता के दर्शन करें।


शिवजी ने उनकी पृतभक्ति देखकर उन्हें व उनके माता-पिता को अमरता का वरदान दिया।जब गालव मुनि घर पहुंचे तो उन्हें उनके पिता यज्ञशाला के द्वार से आते दिखे। उन्हें देखकर गालव मुनि बहुत खुश हुए और पिता के चरणों में गिर पड़े।


इस प्रकार गालव मुनि ने शिवजी की भक्ति से अपने पिता के फिर दर्शन किए।

गायत्री मंत्र से करें शिव की आराधना

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श्रावण मास के आगमन के साथ ही मन में धर्म व अध्यात्म का प्रकाश फैल जाता है। श्रावण मास में सत्संग सुनने का विशेष लाभ मिलता है। यह मास शिव की आराधना के लिए अति उत्तम माना गया है। पुराणों में वर्णित है कि इस मास में सच्चे मन से शिव की आराधना से शिव प्रसन्न होते हैं। इस मास की हर तिथि का भी अपना विशेष महत्व है। विशेष तिथि को शिव का विशेष पूजन- अर्चन करने से सभी सुखों का लाभ मिलता है।

श्रावण कृष्ण दशमी तिथि मां गायत्री को समर्पित है। इस दिन शिव का गायत्री मंत्र द्वारा पूजन करने से अकाल मृत्यु का भय सदैव के लिए समाप्त हो जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन सफेद वस्त्र दान करने से शिव व गायत्री प्रसन्न होते हैं।

भैरव पर लगा ब्रह्महत्या का दोष

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ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। तभी वहां ब्रह्महत्या उत्पन्न हुई और भैरव को त्रास देने लगी। तब भगवान ने ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए भैरव को व्रत करने का आदेश दिया व कहा- जब तक यह कन्या(ब्रह्महत्या) वाराणसी पहुंचे, तब भयंकर रूप धारण करके तुम इसके आगे ही आगे चले जाना। वाराणसी में ही तुम्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी। सर्वत्र विचरण करते हुए जब भगवान भैरव ने विमुक्त नगरी वाराणासी पुरी में प्रवेश किया, उसी समय ब्रह्महत्या पाताल में चली गई और भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल गई।

शिव के साथ करें भैरव की भक्ति 

भैरव ने ब्रह्मा का पांचवा सिर काटा था। जहां वह सिर गिरा वह स्थान काशी में कपाल मोचन तीर्थ के नाम से विख्यात है। जो प्राणी इस तीर्थ का स्मरण करता है, उसके इस जन्म एवं पर जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां आकर सविधि स्नानपूर्वक पितरों एवं देवताओं का तर्पण करके मानव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कपाल मोचन तीर्थ के समीप ही भक्तों के सुखदायक भगवान भैरव स्थित हैं। सज्जनों के प्रिय भैरव का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष की कृष्णाष्टमी को हुआ था। उसी दिन को उपवासपूर्वक जो प्राणी कालभैरव के समीप जागरण करता है, वह संपूर्ण महापापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। यदि कोई व्यक्ति भगवान शंकर का भक्त होते हुए भी कालभैरव का भक्त नहीं है, तो उसे बड़े-बड़े दु:ख भोगने पड़ते हैं। यह बात काशी में विशेष रूप से चरितार्थ होती है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है। 

रेशमी बालों वाले होते हैं सभ्य प्रेमी

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किसी की भी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं यदि उसके बाल सुंदर हो। लड़कियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं उनके लंबे, काले और घने बाल। अच्छे नयन-नक्ष वाली लड़की के बाल भी सुंदर हो तो फिर सोने पे सुहागा ही है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति के बालों से भी आप उसके स्वभाव का पता लगा सकते हैं।

- यदि किसी व्यक्ति के बाल मुलायम, काले घने, रेशम के जैसे हो तो वह व्यक्ति दिलदार होता है। वह जीवन को पूरी मस्ती के साथ जीता है। ऐसे लोगों को धन की कमी नहीं होती। ऐसे लोग बहुत अच्छे प्रेमी होते हैं।

- पतले बाल वाला व्यक्ति साफ मन का और भावुक होता है।

- रूखे और सख्त बाल वाला व्यक्ति बहादुर होता है परंतु वह तंगदिल और अति कामुक भी होता है।

- जिस व्यक्ति के बाल सुर्ख रंग के होंगे उसके साथ हमेशा धन की समस्या रहती है और वह परेशान रहता है।

- सुनहरे बाल वाले व्यक्ति मध्यम स्तर के होते हैं। वे सामान्य व्यतीत करते हैं।

क्या हैं वेद, पुराण और उपनिषद?

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युवाओं के लिए धार्मिक ग्रंथ यानी वेद, पुराण, उपनिषद आदि एक अबूझ पहेली जैसे हैं। ये ग्रंथ क्यों हैं और किस लिए बनाए गए हैं, यह अधिकतर युवाओं की समझ से बाहर है। इन ग्रंथों की पारंपरिक शैली और कठिन भाषा के कारण इन्हें समझना और ज्यादा मुश्किल हो गया है। पुराणों में अधिकांश कहानियां प्रतीकात्मक हैं। अभी तक कई लोगों को यह भी पता नहीं है कि इन किताबों में है क्या? वेद, पुराण और उपनिषदों में आखिर ऐसा क्या है जो पढ़ने लायक है और इन किताबों को पढ़कर क्या सीखा, समझा जा सकता है? इनमें पढ़ने लायक क्या है? 



आइए हम आपको इन ग्रंथों से परिचित कराते हैं:- 

वेद - वेद चार हैं, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। इन्हें दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकें माना गया है। नासा ने भी इसकी प्रामाणिकता स्वीकार की है। ये चारों वेद एक ही वेद के चार भाग हैं, जिन्हें वेद व्यास ने संपादित किया है। ऋग्वेद में सृष्टि की परिस्थितियों, देवताओं आदि की स्थितियों के बारे में विवरण है। सामवेद ऋग्वेद का ही गेय रूप है, इसके सारे श्लोक गेय यानी संगीतमय या गीतमय हैं। यजुर्वेद - यजुर्वेद में यज्ञ संबंधी श्लोक हैं, यज्ञों की विधियां और उससे देवताओं को प्रसन्न करने संबंधी विधियां हैं। अथर्ववेद - इस वेद में परा शक्तियों यानी पारलौकिक शक्तियों के श्लोक हैं। 

उपनिषद - उपनिषद को यह नाम इसलिए मिला है क्योंकि ये वेदों के ही हिस्से हैं। वेदों से ही प्रेरित इन उपनिषदों की रचना वेदव्यास के ही चार शिष्यों ने की है। मूलत: ़108 उपनिषद माने जाते हैं। उपनिषद का अंग्रेजी में अर्थ है कॉलोनी। जैसे शहर के ही किसी एक हिस्से को कॉलोनी कहते हैं, वैसे ही उपनिषदों को भी वेदों का ही हिस्सा माना जाता है। वेदों के ही श्लोकों को कथानक के रूप में उपनिषदों में लिया जाता है। 

पुराण - पुराण पिछले युगों सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की कथाओं का विवरण हैं। इनकी भी रचना वेद व्यास और उनके समकालीन ऋषियों द्वारा की गई है। ये मूलत: पौराणिक पात्रों की कथाओं के ग्रंथ हैं। पुराणों की संख्या 18 मानी गई है। कालांतर में कई ग्रंथ बढ़ गए हैं।

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