17 January 2013

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आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। 

Chanakya

इतनी सदियां गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियां प्रासंगिक हैं, तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।


* ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएं, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

निर्मोही अखाड़े का परिचय

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वैष्णव संतों के मूलत: तीन अखाड़े है- श्री दिगम्बर आनी अखाड़ा, श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा और श्री निर्मोही आनी अखाड़ा। यहां प्रस्तुत है निर्मोही आनी अखाड़े का संक्षिप्त परिचय।

निर्मोही अखाड़े ( nirmohi akhara) की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है। इसीलिए अयोध्या आंदोलन से इस अखाड़े का नाम जुड़ा रहता है। कुम्भ मेले में इसकी भागीदारी बढ़-चढ़कर कर रहती है।

इस अखाड़े ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मस्जिद के नजदीक मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने उसे रोक दिया था। हिंदुओं की तरफ से रामलला ट्रस्ट और निर्मोही अखाड़ा ही कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।

निर्मोही अखाड़ा, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों में से एक है। इसका संबंध वैष्णव संप्रदाय से है और महंत भास्कर दास इसके अध्यक्ष हैं। इस अखाड़े से लगभग 12,000 साधु-संत जुड़े हुए हैं।

हिंदू संतों के अखाड़ों की सूची

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मूलत: कुम्भ या अर्धकुम्भ में साधु-संतों के कुल तेरह अखाड़ों द्वारा भाग लिया जाता है। इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है। इन अखाड़ों के नाम है : -

शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े :
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रम्केश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशस्मेव घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)

बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े :
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)।
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)।
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)।

उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े :
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।

नागा बाबाओं की अद्‍भुत ‍दुनिया

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कुम्भ मेले में शैवपंथी नागा साधुओं को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। नागा साधुओं की रहस्यमय जीवन शैली और दर्शन को जानने के लिए विदेशी श्रद्धालु ज्यादा उत्सुक रहते हैं। कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान में सबसे पहले स्नान का अधिकार इन्हें ही मिलता है।

नागा साधुओं का रूप : नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है।


मस्तक पर आड़ा भभूत लगा तीनधारी तिलक लगा कर धूनी रमा कर, नग्न रह कर और गुफाओं में तप करने वाले नागा साधुओं का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। यह साधु उग्र स्वभाव के होते हैं।

कैसे बनता है व्यक्ति नागा साधु : नागा जीवन की विलक्षण परंपरा में दीक्षित होने के लिए वैराग्य भाव का होना जरूरी है। संसार की मोह-माया से मुक्त कठोर दिल वाला व्यक्ति ही नागा साधु बन सकता है।

साधु बनने से पूर्व ही ऐसे व्यक्ति को अपने हाथों से ही अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करना होता है। अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप में स्वीकार नहीं करते। बाकायदा इसकी कठोर परीक्षा ली जाती है जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं।

कठोर परीक्षा से गुजरने के बाद ही व्यक्ति संन्यासी जीवन की उच्चतम तथा अत्यंत विकट परंपरा में शामिल होकर गौरव प्राप्त करता है। इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परंपराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है।

क्यों शस्त्र धारण किया : शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना आखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया।

नागा इतिहास : वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई। ये नागा जैन और बौद्ध धर्म भी सनातन हिन्दू परम्परा से ही निकले थे। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए।

आज संतों के तेरह-चौदह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधु बनाते हैं :- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।

कुंभ मेले के तीर्थयात्रियों के लिए उपयोगी टिप्स

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PTI
संसार के सबसे बड़े धार्मिक उत्सव में यदि आप जा रहे हैं तो आपके लिए कुछ जरूरी टिप्स और हिदायतें जिन पर अमल करके आप सुरक्षा और सुविधा में रहेंगे और तीर्थ लाभ ले सकेंगे।

1. धार्मिक वस्त्र ही पहनें : आप किसी भी विवाद से बचना चाहते हैं तो धार्मिक वस्त्र ही पहनें। जैसे महिलाएं पीले रंग की साड़ी और पुरुष सफेद-पीले रंग के वस्त्र। लड़कियां तन को पूर्ण रूप से ढंकने वाले वस्त्र ही पहनें। कुंभ मेला प्रशासन ने इस संबंध में हिदायत दे रखी है। यह आपकी और सभी की सुविधा के लिए है।

2. जरूरी सामान साथ में रखें : आप अपने साथ सफर के जरूरी सामान रखें, जैसे कंबल, दरी, तौलिया, तकिए के अलावा पानी की बोतल, नेपकीन, एक जोड़ी स्लीपर, ठंड और धूप से बचने के लिए शॉल-मफलर और जरूरी गोली-दवाइयां। ठंड और जल के प्रभाव से बचने के लिए क्रीम भी साथ रखें। इसके अलावा शहर, तीर्थ और स्नान की जानकारी के लिए जरूरी किताब भी साथ रखें, जो आपका मार्गदर्शन करती रहेगी।

3. स्नान संबंधी जानकारी : आम जनता के लिए गंगा में स्नान का वक्त नियुक्त रहता है। इसकी सूचना लगातार मेला प्रशासन द्वारा दी जाती है। सुबह साधुओं के स्नान के बाद ही आम जनता स्नान कर सकती है।

महिलाओं को स्नान करते वक्त वस्त्र संबंधी विशेष हिदायत दी जाती है। पुरुषों के लिए जरूरी है कि वे स्नान के महत्व को समझें, क्योंकि यह मौका उनके तैरने के आनंद के लिए नहीं होता है। महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग घाट या स्थान का इस्तेमाल किया जाता है, इस बात का ध्यान अवश्य रखें। स्नान करते वक्त नदी में वहीं तक जाएं, जहां तक की जाने की हिदायत दी गई है।

4. साफ-सफाई का रखें ध्यान : गंगा में नहाते वक्त गंगा की साफ-सफाई का विशेष ध्‍यान रखें। साबुन का प्रयोग न करें और नदी में कपड़े न धोएं। सुरक्षा घेरे के भीतर ही स्नान करें। पूजा सामग्री, फूलमालाएं, मूर्ति आदि गंगा में प्रवाहित न करें। कचरा-कूड़ा कूड़े दान में ही डालें। मेला क्षेत्र में कहीं भी पॉलीथिन का प्रयोग न करें और न ही कहीं गंदगी फैलाएं। कुंभ मेला क्षेत्र को साफ-सुथरा रखने में सहयोग करें।

5. साधुओं का करें सम्मान : अक्सर यह देखा गया है कि नागा साधुओं के शिविर के आसपास भीड़ ज्यादा रहती है। वहां लोग नागा साधुओं और उनकी गति‍विधियों के देखने के लिए जमा हो जाते हैं, लेकिन इससे नागा साधुओं को असुविधा होती है। साधु-संतों के शिविर या शिविर के आसपास अनावश्‍यक भीड़ न बढ़ाएं। यह हो सकता है कि कोई साधु आपकी हरकतों से भड़क जाए।
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5. पवित्रता का पालन करें : आप धार्मिक उत्सव में पुण्य कमाने जा रहे हैं तो मन, वचन और कर्म से पवित्र बने रहें। कुंभ मेला आपके मनोरंजन, हंसी-मजाक, पिकनिक पार्टी या घूमने-फिरने के लिए नहीं है। कृपया इसका विशेष ध्यान रखते हुए कुंभ की गंभीरता और गरिमा को समझें। कहीं भी अपशब्दों का इस्तेमाल न करें।

6. खान-पान संबंधी सलाह : अक्सर यह देखा गया है कि लोग, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सड़क किनारे आदि जगहों पर अपने साथ लाया भोजन करने लग जाते हैं। इससे सभी को असुविधा तो होती ही है साथ ही गंदगी भी फैलती है। इसके लिए प्रशासन ने पांडाल बना रखे हैं। आप चाहे तो किसी होटल या रेस्टोरेंट में जाकर भी अपने साथ लाया भोजन कर सकते हैं।

बाजार, ठेले की खाद्य सामग्री से परहेज करें, क्योंकि वह दूषित हो सकता है। स्वच्छ पानी हमेशा साथ रखें या फिर किसी स्वच्छ स्थान से ही पानी पीएं। इससे आप प्रदूषित जल से होने वाली बीमारी से बच जाएंगे।

7. सुरक्षा हिदायत : लावारिस वस्तुओं के मिलने पर मेला प्रशासन अथवा पुलिस विभाग को सूचित करना आपका कर्तव्य है। किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि को नजरअंदाज न करें। नाव में बैठते या नहाते वक्त सुरक्षा का ध्यान रखें। रात्रि को समयपूर्व ही अपने गंतव्य स्थान पहुंच जाएं। बिना वजह मेले में घूमते न रहें।

8. यातायात नियमों का पालन करें : यातायात नियमों का पालन करते हुए निर्धारित पार्किंग स्थलों पर ही अपने वाहनों को खड़ा करें। हर कहीं वाहन खड़ें करने से सभी को असुविधा होगी और इस तरह व्यवस्था भी बिगड़ेगी।

9. सभ्य नागरिक बनकर रहें : हर तरह के बड़े धार्मिक आयोजन में भगदड़ की आशंका, असामाजिक तत्वों की सक्रियता और गैर-धार्मिक लोगों की अनावश्यक गतिविधियों से तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।

एक सभ्य नागरिक की जिम्मेदारी रहती है कि वह नियमों का पालन करके उत्सव को शांतिपूर्ण बनाए और लोगों को भी इसके लिए हिदायत दें। जरूरत पड़ने पर लोगों की मदद करने से चूके नहीं। भूले-भटकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए जरूरी हिदायत दें या मदद करें।
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10. दान करें सोच-समझकर : अक्सर ढोंगी किस्म के साधुओं के चक्कर में फंसकर व्यक्ति अपनी जेब ढीली कर देता है। किसी भी तरह के प्रलोभन से मुसीबत में फंसने से बचने के लिए इस तरह के पंडितों, साधुओं से दूर रहें। दूसरी ओर भिखारियों को बढ़ावा न दें।

11. बुरे कर्म से दूर रहें : मान्यता है कि यदि कुंभ तीर्थ करने वाला बैल, भैंसे पर आरूढ़ होकर गमन करता है तो वह नरकवासी बनता है। यदि कोई व्यक्ति किसी साधु-संत का अपमान करता है, उनकी खिल्ली उड़ाता है तो वह निम्नतर योनियों में जन्म लेता है।

किसी भी तरह से मांस, मदिरा आदि तामसिक भोजन का सेवन करके जो तीर्थ गमन करता है, वह अदृश्य साधु आत्माओं द्वारा शापित होता है। मासिक धर्म से ग्रसित युवती या अपवित्र कर्म करने वाला पुरुष तीर्थ स्नान न करें। ऐसा करने से और पाप लगता है। नदी में पेशाब करना महापाप माना गया है।

12. अच्छे कर्म के पास रहें : कुंभ तीर्थ कल्पवास, स्नान और सत्संग के लिए होता है। तीर्थ यात्रा, पर्यटन या मनोरंजन के लिए नहीं इसलिए तीर्थ में जप, तप और ध्यान का महत्व है। इसके अलावा अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु भी यह अवसर महत्वपूर्ण होता है इसलिए मुंडन कराने के बाद पिंडदान करें।

मन और तन को पवित्र करने के लिए प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में जागने के बाद स्नान करने के बाद सुबह और शाम को संध्यावंदन करें और अन्य समय में वैष्णव, शैव और उदासीन साधुओं के प्रवचन सुनें।

इलाहाबाद कुंभ मेला, हिंदी बोलते रशियन साधु

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पायलट बाबा के शिष्य रशियन साधुओं से उनका असली नाम पूछो तो बताते नहीं है, लेकिन मुस्कुराकर कहते हैं कि नाम में क्या रखा है। इनके गुरू महायोगी पायलट बाबा ने इन्हें हिंदी नाम दे रखे हैं। कोई लक्ष्मण है तो कोई मीसा और कोई सत्यम या आत्मानंद। इनकी खड़ी हिंदी सुनकर कोई भी आश्चर्यचकित रह जाता है।

पायलट बाबा के रूस दौरे में ये उनके सम्पर्क में आए तो मन में वैराग्य जागा। अब तो इन्हें योग-ध्यान और समाधि के अलावा कुछ समझ में नहीं आता।

मूल रूप से रूस के रहने वाले रशियन साधु लक्ष्मण 2010 में अखाड़े से जुड़े थे। उनका कहना है कि कुंभ दुनिया में सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संत आते हैं। उनसे सीखने को बहुत कुछ मिल सकता है।

एक दूसरे रूसी साधु आत्मानंद हरिद्वार में 2010 में हुए कुंभ में भी आए थे। उन्होंने कहा कि पायलट बाबा के दस हजार से ज्यादा विदेशी शिष्य हैं जिन्होंने उनसे योग-ध्यान और समाधि की शिक्षा ली है।

बाबा की लोकप्रियता विदेशों में काफी ज्यादा है। योग और ध्यान पर उनका गजब का नियंत्रण है। आत्मानंद ने ठान लिया है कि अब वह हमेशा बाबा के ही साथ रहेंगे। 

कुंभ में नरेन्द्रानंद सरस्वती का महायज्ञ




काच्ची सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती के शिविर में 31 जनवरी से 'पराशक्ति महायज्ञ' होगा। इसमें पांच करोड़ आहुतियां दी जाएंगी। यह महायज्ञ 15 दिनों तक चलेगा।

स्वामीजी ने कहा कि वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकार जवानों को दांव पर लगा रही है। केन्द्र सरकार की नीतियों पर प्रहार करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि कहा कि वर्तमान में पूरा देश असुरक्षित दौर से गुजर रहा है। इस शासन में न तो जनता सुरक्षित है और न ही देश की सेना।

चलो मन गंगा यमुना तीर : एक माह से भी अधिक दिनों तक चलने वाले इस सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत 16 जनवरी से होगी। प्रथम दिवस की सांस्कृतिक संध्या शहनाई वादन, ऋचा पाठ व मंगल शंख ध्वनि व मंथन कथक शैली की प्रस्तुति के साथ प्रारंभ होगी। उद्‌घाटन दिवस के मुख्‍य आकर्षण सुप्रसिद्ध संगीतकार रवीन्द्र जैन होंगे।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में धनबाद के सुशील बावजो के भजन, चंचल भारती की कव्वाली, पद्‌मश्री गोपाल दास नीरज एवं अन्य लोक बोली के कवियों का काव्य पाठ, सुप्रसिद्ध पंजाबी गायक लखबीरसिंह लक्खा का सूफी भजन गायन, राजू श्रीवास्तव के हास्य व्यंग्य आदि कार्यक्रम होंगे। 

कुंभ मेला, प्रथम नायक- त्रिवेणी संगम सिंहासन

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WD
यह पवित्र संगम गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थल है। भारत का यह सबसे ज्यादा पवित्र जल तीर्थ माना जाता है। वेद पुराण महाकाव्य और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इस पवित्र तीर्थ की महिमा का उल्लेख है।

ऋग्वेद में कहा गया है कि सितासित तरंगों के संगम पर स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस संगम पर यदि प्राणान्त हो जाए तो जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता।

महाकवि कालिदास ने कहा है कि इस पवित्र संगम में स्नान करने से ज्ञान प्राप्ति के बिना भी मुक्ति मिल जाती है। रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों में त्रिवेणी संगम की महिमा का बखान किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने त्रिवेणी संगम क्षेत्र को तीर्थराज प्रयाग का राजसी भव्य सिंहासन कहा है-

संगम सिंहासन सुठि सोहा। छत्र अक्षयवट मुनि मन मोहा।
चंवर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुःख दारिद भंगा॥

त्रिवेणी के निर्गुण स्वरूप की व्याख्या करते हुए कवि ने कहा है-

देहेन्द्रिय प्राण मनो मनीषा
चित्ता ह यज्ञान विभिन्न रूपा
तत्साक्षिणी या स्फुरित स्व भासा
साक्षात्‌ त्रिवेणी मम सिद्धदास्तु

देह, इंद्रिय, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, अज्ञान- इन सबसे जिनका भिन्न रूप है, लेकिन जो इन सबकी साक्षी रूपा त्रिवेणी हैं, जो अपने ही प्रकाश से प्रकाशित हैं, वह मुझे सिद्धि प्रदान करें।

जाग्रत्प्रदं स्वप्नपदं सुषुप्तं
विद्योतयन्ती विकृति तदीयाम्‌।
या निर्विकारोपनिषत्प्रसिद्धा
साक्षात्‌ त्रिवेणी मम सिद्धदास्तु

जागृति स्वप्न सुषुप्ति और इनके विचारों को भी जो प्रकाशित करती है, जो उपनिषदों में निर्विकार के नाम से प्रसिद्ध है, वह साक्षात त्रिवेणी मेरे लिए सिद्धि देने वाली हो।

त्रिवेणी के निर्विकार और सगुण दोनों ही रूपों की प्रशंसा ऋषि-मुनियों और कवियों ने की है। इन मनीषियों ने उन्हें तीर्थराज प्रयाग की प्रिया कहा है-

उत्फुल्लारुण पद्‌मनेत्र युगला मुद्‌दण्ड दैत्यापहाम्‌।
उद्योतोज्ज्वल तीर्थराज रमणी उल्लास तेजोवतीम्‌॥
उत्तकर्षाभयदान पेशलकरा मुच्छास शक्तिप्रदाम्‌।
उर्वस्यार्चित पादुकाम्‌ पर कलां देवीं त्रिवेणीं भजे॥

खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं, जो उद्‌दण्ड दैत्यों का नाश करने वाली हैं, प्रभा से विलसित हैं, तीर्थराज प्रयाग की प्रिया हैं, उल्लास और तेज से युक्त हैं, उत्कर्ष और अभयदान देती हैं, जीवन शक्ति देती हैं, जिनकी खड़ाऊ की पूजा उर्वशी करती हैं, जो उत्कृष्ट कलाओं का रूप हैं, ऐसी त्रिवेणी देवी की मैं वंदना करता हूं।

त्रिवेणी में गंगा-यमुना के साथ गुप्त सरस्वती का संगम माना गया है। इस जलधारा की आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महिमा से आकर्षित होकर हजारों साल से ऋषि-मुनि, राजा और सम्राट संगम क्षेत्र में आते हैं। अनेक दार्शनिकों, धर्म प्रचारकों ने इस संगम में स्नान करके अपने मत, संप्रदाय और सिद्धांत का प्रचार-प्रसार किया।

तीर्थराज प्रयाग का यह संगम सिंहासन एक तरह से ज्ञान-विज्ञान, दर्शन और धार्मिक सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार का मंच बन गया है। संगम क्षेत्र से ही अनेक दार्शनिकों ने अपने समाज कल्याणकारी सिद्धांतों का प्रचार किया। इन दार्शनिक संतों में जगद्‌गुरु शंकराचार्य, गुरु रामानंद, निम्बाकाचार्य, वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, संत रविदास को आज भी बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है।

इलाहाबाद कुंभ, षष्ठ नायक : अक्षयवट वृक्ष

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अक्षयवट तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। पुराण कथाओं के अनुसार यह सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है। नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता।

प्रलयकाल में जब सारी धरती जल में डूब जाती है तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहता है। बाल मुकुंद का रूप धारण करके भगवान विष्णु इस बरगद के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दं विनिवशयन्तम्‌। 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥ 

शूलपाणि महेश्वर इस वृक्ष की रक्षा करते हैं, तव वटं रक्षति सदा शूलपाणि महेश्वरः। पद्‌म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है-

छत्तेऽमितश्चामर चारुपाणी सितासिते यत्र सरिद्वरेण्ये। 
अद्योवटश्छत्रमिवाति भाति स तीर्थ राजो जयति प्रयागः॥ 

अक्षयवट का धार्मिक महत्व सभी शास्त्र-पुराणों में कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज के संगम तट पर आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है- नगर में एक देव मंदिर (पातालपुरी मंदिर) है। यह अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस स्थान पर एक पैसा चढ़ाता है, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्रा चढ़ाने का फल मिलता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर-दूर तक फैली हैं।

पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से श्रद्धालु इस बरगद की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे।

मुगल शासकों ने यह प्रथा खत्म कर दी। उन्होंने अक्षयवट को भी आम तीर्थयात्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस वृक्ष को कालान्तर में नुकसान पहुंचाने का विवरण भी मिलता है।

आज का अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में स्थित है। यहां एक विशाल तहखाने में अनेक देवताओं के साथ बरगद की शाखा रखी हुई है। इसे तीर्थयात्री अक्षयवट के रूप में पूजते हैं।

अक्षयवट का पहला उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भारद्वाज ऋषि ने भगवान राम से कहा था- नर श्रेष्ठ तुम दोनों भाई गंगा और यमुना के संगम पर जाना, वहां से पार उतरने के लिए उपयोगी घाट में अच्छी तरह देखभाल कर यमुना के पार उतर जाना। आगे बढ़ने पर तुम्हें बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। उसके पत्ते हरे रंग के हैं। वह चारों ओर से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ है। उसका नाम श्यामवट है। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां पहुंचकर सीता को उस वृक्ष से आशीर्वाद की याचना करनी चाहिए। यात्री की इच्छा हो तो यहां कुछ देर तक रुके या वहां से आगे चला जाए।

अक्षयवट को वृक्षराज और ब्रह्मा, विष्णु, शिव का रूप कहा गया है-

नमस्ते वृक्ष राजाय ब्रह्ममं, विष्णु शिवात्मक।
सप्त पाताल संस्थाम विचित्र फल दायिने॥
नमो भेषज रूपाय मायायाः पतये नमः।
माधवस्य जलक्रीड़ा लोल पल्लव कारिणे॥
प्रपंच बीज भूताय विचित्र फलदाय च।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः॥

सांवरे सलोने का दीदार चाहिए

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हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
♥¸.•* जय श्रीकृष्ण *•.¸♥(shashikhillan)

सांवरे सलोने का दीदार चाहिए

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हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
♥¸.•* जय श्रीकृष्ण *•.¸♥(shashikhillan)

तेरा दर्श पाने को जी चाहता है

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तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने का जी चाहता है॥
पिला दो मुझे मस्ती के प्याले।
मस्ती में आने को जी चाहता है॥
उठे श्याम तेरे मोहोब्बत का दरिया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है॥
यह दुनिया है एक नज़र का धोखा।
इसे ठुकराने को जी चाहता है॥
श्री कृष्ण गोविन्द, हरे मुरारी, हे
नाथ, नारायण, वासुदेव.
तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने का जी चाहता है॥
पिला दो मुझे मस्ती के प्याले।
मस्ती में आने को जी चाहता है॥
उठे श्याम तेरे मोहोब्बत का दरिया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है॥
यह दुनिया है एक नज़र का धोखा।
इसे ठुकराने को जी चाहता है॥
श्री कृष्ण गोविन्द, हरे मुरारी, हे
नाथ, नारायण, वासुदेव.shashikhillan

जय कारा वीर बजरंगी....

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♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
रामु मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परमहित साहेबु
सखा सहाय नेह नाते , पुनीत चितदेसु , कोसु ,
कुलु , कर्म , धर्म , धनु , धामु , धरनि ,गति
जाति पाति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति
परमारथु , स्वारथु , सुजसु , सुलभ राम तें सकल फल
कह तुलसीदासु अब जब - कबहूँ एक रामते मोर भल !!
बोलो सियावर राम चन्द्र महाराज की जय !
बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय
उमापति महादेव की जय !
संकलनकर्ता.......शंकर डंग.....
♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
 ♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
रामु मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परमहित साहेबु
सखा सहाय नेह नाते , पुनीत चितदेसु , कोसु ,
कुलु , कर्म , धर्म , धनु , धामु , धरनि ,गति
जाति पाति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति
परमारथु , स्वारथु , सुजसु , सुलभ राम तें सकल फल
कह तुलसीदासु अब जब - कबहूँ एक रामते मोर भल !!
बोलो सियावर राम चन्द्र महाराज की जय !
बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय 
उमापति महादेव की जय !
संकलनकर्ता.......शंकर डंग.....

राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।

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शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।
शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।

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