20 November 2012

♥ लकड़ी का कटोरा ♥

http://www.goswamirishta.com एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु – बेटे के यहाँ शहर रहने गया . उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोर हो चुका था , उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था . वो एक छोटे से घर में रहते थे , पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे . लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कत होती थी . कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाते तो कभी हाँथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता . बहु -बेटे एक -दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता की इस काम से चिढ होने लगी . “ हमें इनका कुछ करना पड़ेगा ”, लड़के ने कहा . बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली ,” आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा रहेंगे , और हम इस तरह चीजों का नुक्सान होते हुए भी नहीं देख सकते .” अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के कोने में लगा दिया , अब बूढ़े पिता को वहीँ अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था . यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया , ताकि अब और बर्तन ना टूट -फूट सकें . बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठ कर खाते और जब कभी -कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते . यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता , वो उनकी छोटी से छोटी गलती पर ढेरों बातें सुना देते . वहां बैठा बालक भी यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता , और अपने में मस्त रहता . एक रात खाने से पहले , उस छोटे बालक को उसके माता -पिता ने ज़मीन पर बैठ कर कुछ करते हुए देखा , ”तुम क्या बना रहे हो ?” पिता ने पूछा . बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया , “ अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ , ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खाना खा सकें .” ,और वह पुनः अपने काम में लग गया . पर इस बात का उसके माता -पिता पर बहुत गहरा असर हुआ . उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और आँखों से आंसू बहने लगे . वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि अब उन्हें क्या करना है . उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये , और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया .

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ?

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ? संतोंमें भी स्तर होते हैं , गुरुपद के संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर) से शक्तिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं, सद्गुरु पदके संत (80% आध्यात्मिक स्तर) उसके अगले स्तरके होते हैं और उनसे आनंदके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं और वह वह शक्तिके स्पंदनसे अधिक सूक्ष्म होते हैं और सबसे ऊपर परात्पर पदके संत (९० % आध्यात्मिक स्तर) के होते हैं उनसे शांतिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं | सभी गुरु संत होते हैं, परन्तु सभी संत गुरु नहीं होते | गुरु पद एक कठिन पद होता है और कई बार संत इस पदको स्वीकार करने को इच्छुक नहीं होते और वे आत्मानंदमें रत रहना पसंद करते हैं | ऐसे संतोके मात्र अस्तित्वसे ब्रह्माण्डकी सात्त्विकता बनी रहती है | कुछ संत भक्तोंके अध्यात्मिक कष्ट दूर तो करते हैं, पर किसी को शिष्य स्वीकार कर उसे मोक्ष तक ले जानेको इच्छुक नहीं होते क्योंकि संतोंको पता होता है मात्र शिष्य बनानेसे काम समाप्त नहीं होता, शिष्य जब तक मोक्षको प्राप्त नहीं होता, तब तक वह उत्तरदायित्व गुरुका होता है; अतः कई गुरु शिष्य बनाते समय बहुत सतर्क रहते हैं और योग्य पात्रको ही शिष्य स्वीकार करते हैं | मात्र गुरु पद स्वीकार करनेके पश्चात् संतोकी प्रगति मोक्षकी द्रुत गतिसे होती है | ईश्वर प्रत्येक संतको गुरुके लिए नहीं चुनते, जिनमे दूसरोंको सिखानेकी विशेष क्षमता हो, मां समान मातृत्व, क्षमाशीलता और प्रेम हो, उसे ही सद्गुरु पद पर आसीन करते हैं | What is the difference between a saint and a Guru? Saints too are at different levels as per their sadhana, saints of the status of Guru (70% spiritual level) emit vibrations of Shakti (energy); saints at the status of Sadguru (spiritual master) at 80% spiritual level, are saints of the next higher level and they emit vibrations of bliss. These vibrations are even more subtle than vibrations of Shakti. The saints of the highest status – Paratpar level - are at a spiritual level of more than 90% and they project vibrations of peace. All Gurus are saints, but all saints are not Gurus. The status of a Guru is a difficult one and many a time, saints are not willing to accept this status because they like to remain in a state of bliss. The mere existence of such saints maintains the Sattvikta (purity) of the universe. Some saints remove the spiritual problems of devotees, but they are not desirous of accepting someone as their disciple and take one to Moksha (liberation), for saints know that merely accepting one as a disciple is not enough. Till the time the disciple attains Moksha, it continues to be a responsibility of the Guru. Hence, many Gurus remain alert while accepting disciples and only accept eligible seekers as disciples. Merely by accepting the status of a Guru, saints make progress towards Final Liberation at a rapid pace. God does not select every saint to be a Guru, He confers the status of a Sadguru only upon those who have a special ability to teach others, possess a maternal affection and are forgiving in nature

ठंड में बनाना हो सेहत तो ये हैं ...7 आसान तरीके

ठंड को सेहत बनाने का मौसम माना जाता है। कहते हैं इस मौसम में अगर कोई भी अपना खान-पान अच्छा रखें तो सालभर बीमारियां नहीं आती साथ ही सेहत भी बन जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं खान-पान से जुड़े पांच ऐसे ही नुस्खों के बारें में जिन्हें अपनाकर आप भी अपनी सेहत बना सकते है। - रोज सुबह खाली पेट एक सेवफल खाने से शरीर स्वस्थ रहती है। - वसंतकुसुमकर रस शरीर को न सिर्फ आंतरिक उर्जा देता है बल्कि वजन को जल्दी बढ़ाने में भी लाभकारी है। - ठंड में सुबह हेल्थ के लिए भारी नाश्ता अच्छा माना गया है। इसीलिए ठंड में सुबह भारी नाश्ता करना चाहिए। - रोजाना सुबह एक चम्मच च्यवनप्राश जरूर खाना चाहिए। यह ठंड में वजन बढ़ाने के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक औषधी है। यह लगभग सभी के लिए हेल्दी रहता है। इससे न सिर्फ शारीरिक उर्जा बढ़ती है बल्कि मेटाबोलिज्म भी मजबूत रहता है। - आयुर्वेद के अनुसार ठंड में शतावरी कल्प के सेवन को आंखों की रोशनी तो बढ़ती ही है। साथ ही सेहत बनती है व वजन बढऩे लगता है। - शीलाजीत को दूध से लेने से जल्दी असर करता है और वजन प्रबंधन में भी मदद करता है - ठंड में रोजाना द्रकशरिष्ठा को लगातार एक महीने तक गर्म या ठंडे पानी में शहद के साथ मिलाकर लेना भी शरीर के लिए अच्छा रहता है।

आलोचनाओं से विचलित न

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ। किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ मेंझाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वहहिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कद म बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया। ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ मेंही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगीको गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। अतः याद रखो !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए १)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहो। २)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो ..

सात प्रकार के विवाह

http://www.goswamirishta.com ********सात प्रकार के विवाह********** " ब्रह्मविवाह" " आर्षविवाह" " प्रजापत्य-विवाह" " असुर-विवाह" " गान्धर्व-विवाह" " पैशाच-विवाह " " राक्षस-विवाह" ! विवाह का वर्णन करते हुये ईश्वर कहते हैं----अपने समान गोत्र तथा समान प्रवर में उत्पन्न हुई कन्या का वंरण न करे! पिता से ऊपर की सात पीढ़ियों के साथ तथा माता से मंच पीढ़ियों के बाद की ही परम्परा में उसका जन्म होना चाहिये! उत्तम कुल तथा अच्छे स्वभाव के सदाचारी वर को घर पर बुला कर उसे कन्या का दान देना " ब्रह्मविवाह" कहलाता है! वर के साथ एक गाय और एक बैल लेकर जो कन्यादान किया जाता है, उसे " आर्षविवाह" कहते हैं! जब किसी के मांगने पर उसे कन्या दी जाती है तो वह " प्रजापत्य-विवाह" कहलाता है! कीमत लेकर कन्या का देना " असुर-विवाह" है! [ इसे नीच श्रेणी का विवाह कहा गया है] वर और कन्या जब स्वेच्छापूर्वक एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं तो उसे " गान्धर्व-विवाह" कहलाता है तथा कन्या को धोखा देकर उड़ा लेना " पैशाच-विवाह " माना है! युद्ध के द्वारा कन्या के हर लेने से " राक्षस-विवाह" कहलाता है! ..................................................................... भगवान् हयग्रीव जी [विष्णु] कहते हैं---"ॐ ॐ हूं फट विष्णवे स्वाहा!" इस प्रकार मन्त्र-जप करके सो जाने पर यदि अच्छा स्वप्न हो तो सब शुभ होता है और यदि बुरा स्वप्न हुआ तो नरसिंह मन्त्र से हवन करनेपर शुभ होता है!

8 November 2012

दशनामियों के दो अंग

http://www.goswamirishta.com दशनामियों के दो अंग होते है शस्त्रधारी व अस्त्रधारी,शस्त्रधारी शस्त्रों आदि का अध्यन करके अपना अध्यातिमिक विकास करते है व अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते है । इन नागा सन्यासियों का धार्मिक ही नही राजनैतिक महत्व भी है इनकी स्थापना जिन उद्देश्य को लेकर हई थी उनमें इन्होने अपने पराक्रम साहस का अभूतपूर्व परिचय दिया,उत्तर मुगलकालीन भारत में इन नागे सन्यासियों ने अपने सैनिक कार्य में ख्याति पाई ही साथ ही उन्होने उस समय के वाणिज्य व्यवसाय में भी अच्छा हाथ बंटाया व्यापारिक केन्द्रों में अपने मठ स्थापित किये, नागा संन्यासियों ने राजनैतिक एंव व्यवसायिक दोनो ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किये । सनातन धर्म की रक्षा के लिए ही नागा सन्यासियों का जन्म हुआ यह सब आप पढ चुके है अत्याचारी व हिन्दु का दमन करने वाले मुस्लिम शासको के साथ इन्होने कठिन से कठिन लडाइयां लडी ............... कुछ प्रमुख युद्व इस प्रकार है काशी के ज्ञानवापी का युद्व - 1664 ई0 में औरंगजेब ने काशी ज्ञानवापी एंव विश्वनाथ के मन्दिर पर आक्रमण करके अपने सेनापति मिर्जा अली तुंरग खां एंव अब्दुल अली को विशाल सेना के साथ काशी भेजा, इस आक्रमण के भय से काशी में सर्वत्र हाहाकार मच गया जो रक्षा कर सकते थे वह भी आक्रमण्कारियों के साथ मिल गये ऎसे में नागा सन्यासियों ने अपने शस्त्रों के भयानक प्रराहों से उनको पूर्णतया पराजित कर वहां से भगा दिया इस युद्व में नागा सन्यासियों ने विश्वनाथ की गद्दी की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रख औरगजेब की सेना पर विजय प्राप्त की खुद को योद्वा प्रमाणित कर महान यश को प्राप्त किया । औरंगज़ेब के आतातायी सेनापतियो ने हरिद्वार तीर्थ की पवित्रता को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया तो पंचायती अखाडा के महानिवार्णी के नागा सन्यासियों ने अपने नेताओं के साथ हरिद्वार पहुँच कर आक्रमणकारियों से युद्व करने के लिए शंखनाद किया और अपना झंडा तथा निशान स्थापित करके मुगलसेना का संहार करना आरम्भ कर दिया इसमें मराठा सेना ने भी उनका साथ दिया इस तरह नागाओ ने हरिद्वार की रक्षा की । पुष्कर राजतीर्थ की रक्षा -पुष्कर के दोना पवित्र तीर्थो पर मुसलमान गुजरों की खानाबदोश लुटेरी जाति ने अधिकार करके उसकी पवित्रता को नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन उसी समय दशनाम नागा सन्यासियों के एक दल ने आक्रमण करके उन गुजरों को पराजित करके वहां से भगा दिया व पुष्कर नगर ब्राहृमणों को सौप दिया । जिस समय मुगलों के शाही तक्ष्त पर अहमदशाह बैठा था उसन अवध के नवाब सफदर जंग को अपना वजीर बनाया था ।इस नियुक्ति के कारण ही बंगश अफगान उसके विरोधी हो गये वह जनता पर निरंतर अत्याचार करके भंयकर आपत्ति का सृजन कर रहे थे ऎसी परिस्थितियों में अखाडे के नागा सन्यासियों के द्वारा ही नगर एवं जनता की रक्षा हई ।श्री राजेन्द्रगिरी उस समय नागा सन्यासयों की विशाल सेना के के अधिनायक थे उन्होने बंगश अफगानो को देखकर ही दुर्ग-रक्षक की याचना पर उसको भी अफगानों के भय से मुक्त किया ।राजेन्द्र गिरी, उमराव गिरी, अनूपगिरी ,एतबारपुरी ,नीलकण्ठ गिरी आदि के नेतृत्व में सनातन धर्म की रक्षा प्रकट होती रही ।जिन राजाओ को इनकी सहायता मिलती थी बदले में उन राजाआ द्वारा इन्हे वार्षिक अनुदान का लाभ भी मिलता था।इसके अतिरिक्त अन्य कितने ही देशी राज्यों को इन नागा सन्यासियों न सहायता दी थी नागा सन्यासियों ने ही राजपुत सेना के दोष दुर करने सहायता की थी इसके साथ ही इनकी सेना को स्थिरता भी प्रदान की थी इनके इन योगदानों को कतिपय भुलाया नही जा सकता ।

सौंफ खाने के BENEFITS--

http://www.goswamirishta.com सौंफ सिर्फ भोजन का स्वाद बढ़ाने का ही काम नहीं करती है। खाने के बाद थोड़ी सौंफ चबाने के अनेक फायदे हैं। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे त त्व होते हैं।पेट के कई विकारों जैसे मरोड़, दर्द और गैस्ट्रो विकार के उपचार में यह बहुत लाभकारी है। बड़ा हो या छोटा बच्चा यह हर किसी के स्वास्थ्य के लिए बड़ी लाभकारी है। 1. उल्टी प्यास जी मिचलाना जलन पेटदर्द व पित्तविकार मरोड़ आदि में सौंफ का सेवन बहुत लाभकारी होता है। 2. यदि पेट में मरोड़ होने से परेशान हैं तो सौंफ कच्ची-पक्की करके चबाएं। आराम मिलेगा। 3. सौंफ का अर्क दस ग्राम शहद मिलाकर लें। खाँसी में तत्काल आराम मिलेगा। 4. बेल का गूदा 10 ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह-शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है और अतिसार में लाभ होता है। 5. दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है। 6. अस्थमा और खांसी के उपचार में सौंफ सहायक है। 7. गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है। 8. अगर गले में खराश हो जाए तो सौंफ चबाना चाहिए। सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला भी साफ हो जाता है। 9. रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा में चमक आती है। 10. 5-6 ग्राम सौंफ लेने से लीवर और आंखों की ज्योति ठीक रहती है। अपच संबंधी विकारों में सौंफ बेहद उपयोगी है। बिना तेल के तवे पर तली हुई सौंफ और बिना तली सौंफ के मिक्चर से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है। 11. सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आँखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।

Magical Health Benefits of " Wheatgrass Juice "

http://www.goswamirishta.com ( If You drink only 1 or 2 ounces of wheat-grass juice in a day, it will provide you enough Energy required for the day. ) 1 ) Anti Cancer : wheatgrass is high in chlorophyll, which is capab le of kill cancer cells. It deals with cancer is great due to it contains chlorophyll, which has practically the same molecular structure as hemoglobin. Chlorophyll boosts hemoglobin production, sense more Oxygen gets to the cancer. Selenium and Laetrile are other properties in wheatgrass, both are anticancer. 2 ) It boosts the İmmune System and the Nervous System. Chlorophyll and Selenium, moreover, help builds the İmmunity System. 3 ) Natural Detox : Detoxification of the body, blood and organs. It purifies the Blood and Cleanses the Kidneys, Liver and Urinary Tract. 4 ) The chlorophyll in wheat-grass also has Antibacterial drug properties, that can halt the growth of harmful bacteria in the body. 5 ) Wheat-grass juice is suitable for Diabetics as it regulates blood sugar levels. 6 ) It enhances the capillaries and reduces High Blood Pressure. 7 ) Weight Loss : It is an appetite suppressant. Wheatgrass juice is full of chlorophyll and protein, which restrain the breakdown of protein. Therefore, wheatgrass helps you to feel full of a long time since ingestion.The high nutritional merit of wheatgrass juice also puts up to feel appeased after drinking it. It is acculturated quickly by the body, which as well contributes to hunger for satisfaction. Wheatgrass juice provides energy, which helps motivates you to exercise and be more active, putting up to weight loss and perpetuation.

अनार का जूस घटा सकता है चर्बी

http://www.goswamirishta.com * रोज एक गिलास अनार का जूस पीजिए। अनार का रस पेट पर जमी चर्बी तथा कमर पर टायर की तरह लटकते मांस को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। * अपच : यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें। * प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। * दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है। * अनार कब्ज दूर करता है, मीठा होने पर पाचन शक्ति बढ़ाता है। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है। * अत्यधिक मासिक स्राव में : अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण एक चम्मच फाँकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रक्त स्राव रुक जाता है। * मुँह में दुर्गंध : मुँह में दुर्गंध आती हो तो अनार का छिलका उबालकर सुबह-शाम कुल्ला करें। इसके छिलकों को जलाकर मंजन करने से दाँत के रोग दूर होते हैं। * अनार आपका मूड अच्छा करता है और साथ ही याददाश्त बढ़ाता है। तनाव से भी आपको निजात दिलाता है। * अनार का रस वृद्धावस्था में सठिया जाने के रोग की संभावना भी घटाता है। * अनार में लोहा की भरपूर मात्रा होती है, जो रक्त में आयरन की कमी को पूरा करता है। * अनार के जूस को खाली पेट मे पी सकते है और यह सफेद दाग मे यह फायदा करता है * उच्च रक् तचाप को घटाता है, सूजन और जलन में राहत पहुँचाता है, गठिया और वात रोग की संभावना घटाता और जोड़ों में दर्द कम करता है, कैंसर की रोकथाम में सहायक बनता है, शरीर के बुढ़ाने की गति धीमी करता है और महिलाओं में मातृत्व की संभावना और पुरुषों में पुंसत्व बढ़ाता है। अनार को त्वचा के कैंसर, स्तन-कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि के कैंसर और पेट में अल्सर की संभावना घटाने की दृष्टि से भी विशेष उपयोगी पाया गया है। * बच्चों की खाँसी, अनार के छिलकों का चूर्ण आधा-आधा छोटा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से मिट जाती है। ************************************** हानिकारक सभी प्रकार के अनार शीत प्रकृति वालों के लिये हानिकारक होता है। मीठा अनार बुखार वालों को खट्टा और फीका अनार सर्द मिजाज वालों के लिए हानिकारक हो सकता है। *******************************

वेदों का इतिहास जानें यही है सनातन धर्म के धर्मग्रंथ

http://www.goswamirishta.com ।।ॐ।। वेद 'विद' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना, ज्ञाता या जानने वाला; मानना नहीं और न ही मानने वाला। सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य। जाँचा-परखा मार्ग। इसी में संकलित है 'ब्रह्म वाक्य'। WD वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। वेद वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। विद्वानों ने संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं। बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं। संहिता : मन्त्र भाग। वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है। जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध हो उठता है। ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है। वेदों के मंत्रों की व्याख्या है। यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ। आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : (1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार। उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण वेदांत कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं। मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।

वैदिक काल

http://www.goswamirishta.com प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं। वेद के विभाग चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई। ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन। यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल। सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है। अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है। ND उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है।

छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)-

http://www.goswamirishta.com (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प। छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक। ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत। वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं। आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया- (1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक। वेदों का सार है उपनिषदें और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है। इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं। स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है। वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है। विद्वानों ने वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है। ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है और वेदों को ईश्वर वाक्य। वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है। ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि उन्होंने पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा, सुना और परखा। मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्‍भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है। श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते। तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥ भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन की गति को मापा गया है। ऋषि-मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया।।। ॐ ।।

हरा धनिया

http://www.goswamirishta.com हरा धनिया मसाले के रूप में व भोजन को सजाने या सुंदरता बढ़ाने के साथ ही चटनी के रूप में भी खाया जाता है। हमारे बड़े-बुजूर्ग इसके औषधिय गुणों को जानते थे इसीलिए प्राचीन समय से ही धनिए का उपयोग भारतीय भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरे धनिए के कुछ ऐसे ही औषधिय गुणों के बारे में... - इसके एंटीसेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है इसीलिए अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो धनिए की हरी पत्तियों को पीसकर उसमें चुटकीभर हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जीमा, सुखापन और एलर्जी से राहत दिलवाता है। - आयरन से भरपूर होने के कारण यह एनिमिया को दूर करने में मददगार होता है। एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, सी और कई मिनरलों से भरपूर धनिया कैंसर से बचाव करता है। - हरा धनिया की चटनी बनाकर खाई जाती है क्योंकि जो हमाइसको खाने से नींद भी अच्छी आती है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। यह इंसुलिन बढ़ाता है और रक्त का ग्लूकोज स्तर कम करने में मदद करता है। - धनिया की पत्तियों में एंटी टय़ुमेटिक और एंटी अर्थराइटिस के गुण होते हैं। यह सूजन कम करने में बहुत मददगार होता है, इसलिए जोड़ों के दर्द में राहत देता है। - हरा धनिया वातनाशक होने के साथ-साथ पाचनशक्ति भी बढ़ाता है। धनिया की हरी पत्तियां पित्तनाशक होती हैं। पित्त या कफ की शिकायत होने पर दो चम्मच धनिया की हरी-पत्तियों का रस सेवन करना चाहिए।

रुद्राक्ष क्या है ?

http://www.goswamirishta.com रुद्राक्ष एक फल की गुठली है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। रुद्राक्ष शिव का वरदान है, जो संसार के भौतिक दु:खों को दूर करने के लिए प्रभु शंकर ने प्रकट किया है। रुद्राक्ष के नाम और उनका स्वरूप:: एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, द्विमुखी श्री गौरी-शंकर, त्रिमुखी तेजोमय अग्नि, चतुर्थमुखी श्री पंचदेव, षष्ठमुखी भगवान कार्तिकेय, सप्तमुखी प्रभु अनंत, अष्टमुखी भगवान श्री गेणश, नवममुखी भगवती देवी दुर्गा, दसमुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र तथा चौदहमुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं। एकमुखी रुद्राक्ष- ऐसा रुद्राक्ष जिसमें एक ही आँख अथवा बिंदी हो। स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है। द्विमुखी रुद्राक्ष- सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है। त्रिमुखी रुद्राक्ष- ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है। चतुर्थमुखी रुद्राक्ष- धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला होता है। पंचमुखी रुद्राक्ष- सुख प्रदान करने वाला। षष्ठमुखी रुद्राक्ष- पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता होता है। सप्तमुखी रुद्राक्ष- दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष- आयु एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है। नवममुखी रुद्राक्ष- मृत्यु के डर से मुक्त करने वाला होता है। दसमुखी रुद्राक्ष- शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष- विजय दिलाने वाला, ज्ञान एवं भक्ति प्रदान करने वाला होता है। बारह मुखी रुद्राक्ष- धन प्राप्ति कराता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष- शुभ व लाभ प्रदान कराने वाला होता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष- संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।

कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

http://www.goswamirishta.com एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए ह ैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा। कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भी दाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी द ाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।' सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुई है। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभ से पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?' शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।' उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके। दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

न सुख, न दुख, केवल समभाव

http://www.goswamirishta.com फूल आते हैं, चले जाते हैं. कांटे आते हैं, चले जाते हैं. सुख आते हैं, चले जाते हैं. दुख आते हैं, चले जाते हैं. जो जगत के इस ‘चले जाने’ के शाश्वत नियम को जान लेता है, उसका जीवन क्रमश: बंधनों से मुक्त होने लगता है. एक अंधकारपूर्ण रात्रि में कोई व्यक्ति नदी तट से कूदकर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था. वर्षा के दिन थे और नदी पूर्ण पर थी. आकाश में बादल घिरे थे और बीच-बीच में बिजली चमक रही थी. वह व्यक्ति उस देश का बहुत धनी व्यक्ति था, लेकिन अचानक घाटा लगा और उसकी सारी संपत्ति चली गई. उसके भाग्य का सूरज डूब गया था और उसके समक्ष अंधकार के अतिरिक्त और कोई भविष्य नहीं था. ऐसी स्थिति में उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया था. किंतु वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पर पहुंचने को हुआ कि किन्हीं दो बूढ़ी लेकिन मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया. तभी बिजली चमकी और उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है. उस वृद्ध ने उससे इस निराशा का कारण पूछा और सारी कथा सुनकर वह हंसने लगा और बोला, ”तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे?” वह व्यक्ति बोला, ”हां, मेरा भाग्य-सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था और अब सिवाय अंधकार के मेरे जीवन में और कुछ भी शेष नहीं है.” वह वृद्ध फिर हंसने लगा और बोला, ”दिन के बाद रात्रि है और रात्रि के बाद दिन. जब दिन नहीं टिकता, तो रात्रि भी कैसे टिकेगी? परिवर्तन प्रकृति का नियम है. ठीक से सुन लो – जब अच्छे दिन नहीं रहे, तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे. और जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, वह सुख में सुखी नहीं होता और दुख में दुखी नहीं. उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है, जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है.” सुख और दुख को जो समभाव से ले, समझना कि उसने स्वयं को जान लिया. क्योंकि, स्वयं की पृथकता का बोध ही समभाव को जन्म देता है. सुख-दुख आते और जाते हैं, जो न आता है और न जाता है, वह है, स्वयं का अस्तित्व, इस अस्तित्व में ठहर जाना ही समत्व है.

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ये है सनातन धर्म के संस्कार

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