13 September 2011

अनमोल-वचन

महापुरुषों की पहली पहचान उनकी विनम्रता है .• कोई कार्य तुच्छ नहीं होता। यदि मनपसन्द कार्य मिल जाए, तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता हैं, किंतु बुद्धिमान इंसान वही हैं, जो प्रत्येक कार्य को अपने लिए रुचिकर बना ले। 

• प्रसन्नता अनमोल खजाना हैं। छोटी-छोटी बातों पर उसे लुटने न दें। 

• जिसे अपने में विश्वास नहीं, उसे भगवान में विश्वास कभी नहीं हो सकता। 

• सत्य के लिए हर वस्तु की बलि दी जा सकती हैं, किन्तु सत्य की बलि किसी भी वस्तु के लिए नहीं दी जा सकती हैं। 

• अगर आपने किसी जरुरतमंद की सेवा की तो धन्यवाद के पात्र आप नहीं वह जरुरतमंद व्यक्ति हैं, क्योंकि उसने आपको सेवा का मौका दिया। 

• असंतुष्ट व्यक्ति किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता, उसके लिए सभी कर्तव्य नीरस होते हैं। फलस्वरुप उसका जीवन असफल होना स्वाभाविक हैं। 

• क्रियाशीलता ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र मार्ग हैं। 

• अपवित्र कल्पना भी उतनी बुरी होती हैं जितना कि अपवित्र कर्म होता हैं। 

• कामना सागर की भांति अतॄप्त हैं, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढता हैं। 

• लोभ से बुद्धि नष्ट होती हैं, बुद्धि नष्ट होने से लज्जा, लज्जा नष्ट होने से धर्म तथा धर्म नष्ट होने से मनुष्य का सर्वत्र नष्ट हो जाता हैं। 
• कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ? 

• जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। 

• पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।

• यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। 

• आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। 

अच्छी बात किसी ने भी कही हो, वह अच्छी है, उसे ध्यान से सुनो। गोताखोर की हीनता से मोती के मूल्य में कोई कमी नहीं आ सकती। 

हमें अपनी प्रार्थनाओं से सामान्य मंगलकामना करनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ही भली-भांति जानता हैं कि हमारी किस में भलाई हैं? 

उन्हें स्वामिभक्त न समझो, जो तुम्हारे शब्दों और कामों की प्रंशसा करें, अपितु उन पर कॄपा करो, जो तुम्हारे दोषों पर झिडकें। 

शेक्सपीयर के अनमोल वचन

प्रत्येक का उपदेश सुनो पर अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तिओं को दो। 

अपने शत्रु के लिए अपनी भट्टी को इतना गरम न करो कि वह तुम्हें ही भून कर रख दे। 

जो हानि हो चुकी हैं उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना हैं। 

वीर केवल एक ही बार मरता हैं। कायर जीते जी बार-बार मरते हैं। 

सुनो अधिक से अधिक, बोलो कम से कम। 

जो लुटने पर भी मुस्कुराता हैं, वह चोर का कुछ चुरा लेता हैं। 

अपराधी मन संदेह का अड्डा हैं,चोर को हर झाडी में पुलिस का भय बना रहता हैं। 

जो एक बार विश्वासघात कर चुका हो, उसका विश्वास मत करो। 

कर्म को वचन के अनुरुप और वचन को कर्म के अनुरुप बनाओ। 

जिसमें सोचने की शक्ति खत्म हो गई हैं, समझ लीजिए वह व्यक्ति बर्बाद हो चुका हैं। 

विवेक बहादुरी का उत्तम भाग हैं। 

चिंता जीवन के सुख की शत्रु हैं। 
• संसार मे जो परिवर्तन तुम देखना चाहते हो, उसकी शुरुवात स्वयं को उस परिवर्तन मे ढाल के करो।
• शुद्ध ह्रदय से निकला हुआ वचन कभी निष्फल नहीं होता। 
• यदि आदमी सीखना चाहे तो उसकी हरेक भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती हैं। 

• गलती स्वीकार कर लेना झाडु बुहारने के समान हैं, दोनों से गंदगी साफ हो जाती हैं। 
• विचार शून्य जीवन पशु जैसा हैं। 
• लगन के बिना किसी में भी महान प्रतिभा पैदा नहीं हो सकती। 

• आदमी अपनी प्रंशसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं हैं। जिसमें योग्यता होती हैं उसका ध्यान उधर नहीं जाता। 
• प्रेम की शक्ति दंड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती हैं। 
• भूल करना मनुष्य का स्वभाव हैं, की गई भूल को स्वीकार करना एवं वैसी भूल फिर न करने का प्रयास करना वीर एवं शूर होने का प्रतीक हैं। 

• अंधा वह नहीं, जिसकी आंख नहीं हैं। अंधा वह हैं, जो अपना दोष छिपाता हैं।
• क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। 
• हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं, कायरता हैं। 

• एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। 
• साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। 
• सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। 

• हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। 
• प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। 
• किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन बेडियों में होती है। 

• यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। 
• यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। 
• आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। 

• यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। 
• धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। 
• किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। 

• स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। 
• मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। 
• जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। 

• अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। 
• पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। 
• मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। 

क्षमा से सभी कषाय नष्ट - मुनि पुलकसागर



क्षमा कषायों पर फहराई गई विजय पताका है। जहाँ क्षमा होती है वहाँ क्रोध, मान, माया, लोभ सभी कषाय नष्ट हो जाते हैं। यही वजह है कि दसलक्षण धर्म की व्याख्या उत्तम क्षमा से शुरू होती है और क्षमावाणी पर समाप्त होती है। 

ऐसा लगता है जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो जिसमें पहला मनका जहाँ से शुरू होता है अंतिम मनका वहीं आकर समाप्त हो जाता है। पहले और अंतिम मनके के मिलन में तीन मनकों का रास्ता मिलता है जिसमें भगवान महावीर का मुक्ति सूत्र छिपा है।

सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता। क्षमा को क्षमा के अंदाज में जियो। अक्सर आदमी क्षमा को भी क्रोध के अंदाज में जीता है। सचाई तो यह है कि हमेशा क्रोध ने क्षमा के आगे घुटने टेके हैं। 

श्रावक और साधक को जीवन में क्रोध पर विजय पाने के लिए क्षमा का गुण अपनाना चाहिए। यदि आपके प्रति कोई बुरा भाव रखता भी है तो उसे क्षमा करना सीखें और उसके प्रति नेक भावना की आदत डालें। 

क्षमावाणी के पावन व पुनीत अवसर पर हम स्वयं के द्वारा जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा माँगें, शत्रुता को भूलकर क्षमा भाव धारण करें। सुखी रहें सब जीव जगत के इसी भावना के साथ उत्तम क्षमा। 

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