9 September 2011

आपका हार्ट और आयुर्वेद


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आज विश्व की आबादी के 90 प्रतिशत व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित है जो अनियमित भोजन, अनियमित दिनचर्या के साथ फास्ट फूड अत्यधिक प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से एसिडिटी, गैस, उच्च रक्तचाप, मोटापा तथा मधुमेह जैसे रोग के साथ हृदय रोग की उत्पत्ति करता है, जिसमें एंजायना पेन, हार्ट अटैक, आर्टी चोक, ब्लडप्रेशर जैसे प्रमुख रोग हैं। 

प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से कोलस्ट्रॉल की उत्पत्ति होती है जो रक्तवाहिनी के शिराओं में मोम की तरह जमा होकर रक्त के प्रवाह में बाधा उत्पन्न कर साँस लेने में कठिनाई पैदाकर एंजायना पेन को जन्म देता है। इसमें यकृत (लीवर) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जो प्रोटीन, ग्लूकोज आदि पदार्थों को घुलनशील बनाकर स्वास्थ्य के उपयोगी बनाती है। आर्टी चोक में 60 से 85 प्रतिशत रोगी आयुर्वेद के उपचार तथा खानपान को नियंत्रित कर बिना किसी शल्यक्रिया के आजीवन स्वास्थ्य रह सकते हैं। 

अनियमित खानपान तथा लंबे समय तक कब्ज की स्थिति में जब भोजन का पाचन नहीं होता और भोजन आमाशय तथा अन्य पाचन अंगों में एकत्र होकर सड़न पैदा कर देता है जिससे एक प्रकार के विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है और वह रक्त के साथ यूरिन एसिड में परिवर्तित होकर गुर्दों में जाकर छनन क्रिया में बाधा उत्पन्न कर देता है। 

जब किडनी से छनन क्रिया भरपूर ढंग से नहीं हो पाती तो यूरिया, प्रोटीन तथा अन्य द्रव्य रक्त के साथ हृदय में पहुँच जाते हैं जिससे रक्त में गाढ़ापन आ जाता है। नतीजतन आँखों के नीचे, पैरों में तथा घुटनों में सूजन के साथ-साथ संधिवात तथा उच्चरक्त चाप की वृद्धि हो जाती है। 

ऐसी स्थिति में एलोपैथी चिकित्सक लेसिक्स तथा अन्य हाई डोज दवाएँ देते हैं जिससे रोगी में पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है। इससे प्रोटीन कैल्सियम जैसे आवश्यक तत्व शरीर से बाहर हो जाते हैं और रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है और तब रोगी को प्रोटीनयुक्त पदार्थ तथा इंजेक्शन देना पड़ता है।

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किंतु आयुर्वेद में सामान्य रूप से अरंड तेल की 25 एमएल की मात्रा से उसकी स्थिति ठीक हो जाती है और सारे लक्षण स्वतः समाप्त हो जाते हैं। इसी तरह लंबे समय तक बढ़ा हुआ रक्तचाप हृदयवृति या हृदय प्रसार को जन्म देता है जिससे हृदय का निचला हिस्सा बढ़ जाता है। 

परिणाम यह होता है कि शुद्ध रक्त फेफड़ों तथा मस्तिष्क में भेजने वाले ॉल्व जल्दी नहीं खुल पाते जिससे रोगी साँस लेने में कठिनाई का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में रोगी को धीरे-धीरे तथा लंबी साँस के साथ दोनों हाथ ऊपर-नीचे करने चाहिए जिससे ॉल्व खुल जाते हैं तथा रक्त का संचार होने लगता है और रोगी राहत महसूस करता है। 

खानपान 
भोजन के साथ अदरख, लहसुन, सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग, तेजपत्ता, सेंधा नमक का उपयोग करें। रात्रि में दूध में उबलते समय छोटी पीपल, जायफल तथा हल्दी का चूर्ण 2-2 ग्राम केशर के साथ डालकर सोने से पूर्व प्रयोग करें। खानपान में पुराना गेहूँ, जौ, चना (देशी) अंकुरित दालें, मूँग की दाल, मसूर की दाल, सेम, मटर की फली, बींस, फलों में पपीता, अनार, मुनक्का, अँगूर आदि पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं।

ये घुलनशील रेशेदार खाद्य पदार्थ ग्लूकोज, कोलस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं। वहीं प्रातः-रात्रि अर्जुन नाग केशर, दालचीनी, पुष्कर मूल, जटामाँसी तथा गुगलू (शुद्ध) शिलाजीत युक्त औषधि रोगी को रोग मुक्त कर दीर्घजीवी बनाते हैं।

परहेज 
हृदयरोगी मांसाहार, धूम्रपान, शराब, अत्यधिक चाय, कॉफी, फास्ट फूड, जंकफूड, सॉस, तली सब्जियाँ, चिप्स, डिब्बाबंद भोजन, चीज, खोया, मलाई, मक्खन तथा अंडे की जर्दी, नारियल का तेल, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि से बचें। अपने को हृदय रोग से बचाने हेतु तनाव मुक्त प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। शाकाहार, योग तथा प्राणायाम के जरिए निरोग रह सकते हैं।

असरकारी अनार : ना होने दे बीमार


अनार एक ऐसा फल है जिसके नियमित सेवन से हमें अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। ऐसा माना जाता है कि अनार का जन्मस्थल अरब देश है। अनार खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पाचक और हमारे शरीर में रक्त वृद्धि करने वाला भी होता है। इस फल के दाने लाल मोती जैसे चमकते हैं। ये फल खट्टा मीठा स्वाद लिए होता है। अनुपम गुणों वाला अनार स्वास्थ्यवर्धक फल है। जिसका नियमित सेवन करने से बीमारी पड़ने की संभावना कम हो जाती है और इसके चूर्ण से बीमारियां हमसे कोसों दूर भागती हैं

इसके लगातार सेवन से हम बहुत सी बीमारियों को दूर कर सकते हैं। जैसे- 

अतिसार- अनार के रस के साथ सौंफ, धनिया और जीरा इनको बराबर मात्रा में पीस कर इनका चूर्ण बनाकर सेवन करें। अथवा अनार के रस में पका हुआ केला मथकर इसका सेवन करें।

शरीर में खून की कमी- एनीमिया शीघ्र दूर करने के लिए अनार का रस और मूली का रस समान मात्रा में मिलाकर पीएँ। 

कब्जीयत (कब्ज) - अनार के पत्तों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से कब्ज से पीछा छुड़ाया जा सकता है। अजवायन का चूर्ण फाँक कर फिर अनार का रस पीएँ। तो कब्ज से मुक्ति मिलेगी। 

एसीडिटी (अम्ल पित्त)- अनार रस और मूली का रस समान मात्रा में लेकर उसमें अजवायन, सैंधा नमक चुटकी भर मिलाकर सेवन करने से अम्ल पित्त बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। 

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यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें। 

प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है। 

दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है। 

दमा/खाँसी में : जवाखार आधा तौला, कालीमिर्च एक तौला, पीपल दो तौला, अनारदाना चार तौला, इन सबका चूर्ण बना लें। फिर आठ तौला गुड़ में मिलाकर चटनी बना लें। चार-चार रत्ती की गोलियाँ बना लें। गरम पानी से सुबह, दोपहर, शाम एक-एक गोली लें। इस प्रयोग से दुःसाध्य खाँसी मिट जाती है, दमा रोग में राहत मिलती है। बच्चों की खाँसी, अनार के छिलकों का चूर्ण आधा-आधा छोटा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से मिट जाती है।

उफ, ये मुंह के छाले


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शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें। मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए। 

कत्था, मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए। 

अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखने से अथवा केवल गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं। 

अमरूद के कोमल पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। 


अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में ओंटाकर चतुर्थांश शेष बचे क्वाथ से कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर होते हैं। 

सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटना चाहिए। 

नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।

कद्दू एक, फायदे अनेक


कहने-सुनने में भले ही 'कद्दू' शब्द का प्रयोग व्यंग्यात्मक रूप में किया जाता हो, लेकिन 'व्यंजनात्मक' रूप में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। स्वाद के लिए भी और सेहत के लिए भी। प्रकृति ने अपनी इस 'बड़ी' देन में कई तरह के औषधीय गुण समेटे हैं। इसका सेवन स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इस सब्जी में 'पेट' से लेकर 'दिल' तक की कई बीमारियों के इलाज की क्षमता है। जहां यह हृदयरोगियों के लिए बहुत लाभदायक होती है, वहीं कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक होती है

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कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है। 

कद्दू का रस भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह मूत्रवर्धक होता है और पेट संबंधी गड़बड़ियों में भी लाभकारी रहताहै। यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।

कद्दू के बीज भी बहुत गुणकारी होते हैं। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। यह बलवर्धक, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। शायद इन्हीं खूबियों की वजह से कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है।

हमारे पूर्वजों ने भी कद्दू के इन औषधीय गुणों को बहुत पहले ही पहचान लिया था और यही कारण है कि हमारे देश में, खासतौर पर उत्तर भारत के खान-पान में, इसे विशेष महत्व दिया जाता है। कद्दू को सीताफल, कुम्हड़ा, काशीफल, मीठा कद्दू, चपन कद्दू आदि कई नामों से जाना जाता है। 

भारत में कद्दू की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें उनके आकार-प्रकार और गूदे के आधार पर मुख्य रूप से सीताफल, चपन कद्दू और विलायती कद्दू के वर्गों में बांटा जाता है। हमारे यहां विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर कद्दू की सब्जी और हलवा आदि बनाना-खाना शुभ माना जाता है। उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है।

विभिन्न तरीकों से सबको लुभाने वाला कद्दू अंटार्कटिका के अलावा दूसरे सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। माना जाता है कि कद्दू की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में हुई होगी। इसके सबसे पुराने बीज 7000 से 5000 ईसा पूर्व के हैं। पश्चिमी एशिया में इसका इस्तेमाल मीठे व्यंजन बनाने में किया जाता है। आगरा की प्रसिद्ध मिठाई 'पेठा' भी इसी की प्रजाति की सब्जी से बनाई जाती है। अमेरिका, मेक्सिको, चीन और भारत इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं।

तीखी लौंग के लाभकारी प्रयोग


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चार लौंग कूट कर एक कप पानी में डाल कर उबालें। 

आधा पानी रहने पर छान कर स्वाद के अनुसार मीठा मिला कर पी कर करवट लेकर सो जाएं। दिन भर में ऐसी चार मात्रा लें। उल्टियां बंद हो जाएंगी। 

चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है। आंत्र ज्वर में लौंग का पानी पिलाएं। 

पांच लौंग दो किलो पानी में उबालकर आधा पानी रहने पर छान लें। इस पानी को नित्य बार-बार पिलाएं। केवल पानी भी उबाल कर ठंडा करके पिलाएं। 

एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। इस प्रकार तीन बार लेने से सामान्य ज्वर दूर हो जाएगा। 

लौंग अग्नि को जगाने वाली, पाचक है। नेत्रों के लिए हितकारी, क्षय रोग का नाश करने वाली है। लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है। 

खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह, शाम खाने से या शर्बत में लेने से अम्लपित्त से होने वाले सभी रोगों में लाभ होता है और अम्लपित्त ठीक हो जाता है। 

15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं। 

ऐसी तीन मात्रा सुबह, दोपहर, रात को सोते समय पिलाएं। कुछ ही दिनों में आशातीत लाभ होगा। 

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दो लौंग पीस कर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें, फिर कुछ ठंडा होने पर पी जाएं। इस प्रकार तीन बार नित्य करें।

लौंग में अर्क निकाली हुई लौंग मिला देते हैं। यदि लौंग में झुर्रियाँ पड़ी हों तो समझें कि यह अर्क निकाली हुई लौंग है। अच्छी लौंग में झुर्रियां नहीं होतीं। 


सावधानी : लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अधिक मात्रा में लौंग का सेवन हानिकारक होता है।
 


दवाई चाहिए? रसोई-घर में आइए! औषधि का भंडार हमारा किचन



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अक्सर हमें या परिवार के सदस्यों को रोजमर्रा के जीवन में स्वास्थ्य-संबंधी छोटी-मोटी समस्याएं घेरे रहती हैं, जिनकी वजह से कई बार तो हमारी रोज जीवनचर्या भी उथल-पुथल हो जाती है। आमतौर पर पाचन, नेत्र, दांत, सिरदर्द, बुखार, त्वचा या मौसम परिवर्तन से संबंधित स्वास्थ्य तकलीफें ऐसी होती हैं, जिनके लिए बार-बार, समय-असमय डॉक्टर के पास जाना या एलोपैथी के गोली-कैप्सूल का प्रयोग करना उचित नहीं होता है। 

इसलिए दादी-नानी के जमाने से चले आ रहे घरेलू नुस्खों और इलाजों का सहारा लेना सुरक्षित है। रसोई घर में रखी कई चीजें जैसे मसाले, खाद्यान्न, फल-सब्जी, शहद, घी-तेल आदि औषधि का काम भी करते हैं। अतः रसोई घर को 'औषधि का भंडार' कहना गलत नहीं होगा

पेट दर्द- अजवायन, सौंफ और थोड़ा-सा काला नमक मिलाकर चूर्ण बनाकर खाएं। आराम मिलेगा। पेटदर्द गायब हो जाएगा। 

सिर दर्द- एक कप दूध में पिसी इलायची डालकर पीने से सिरदर्द ठीक हो जाएगा। 

दांत दर्द- एक चम्मच सरसों के तेल में एक चुटकी हल्दी और नमक मिलाकर दांतों पर लगाने या हलके-हलके मालिश करने से दांत का दर्द दस से पंद्रह मिनट में ठीक हो जाता है। 

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घुटनों का दर्द- पानी में अजवायन उबालकर इस अजवायन वाले पानी की भाप घुटनों पर देने से दर्द ठीक होता है। अजवायन के पानी में तौलिया भिगोकर और हलका निचोड़कर उसे घुटनों पर रखकर गर्म सेंक देने से भी दर्द में राहत मिलती है। 

माइग्रेन- रात में सोने से पहले नाक में गाय के दूध से बने घी की दो-दो बूंदें डालें। इसके अलावा सिर पर गाय के घी की मालिश हलके हाथ से करें। 

कब्ज- आंवले का चूर्ण बनाकर सुबह-शाम गरम पानी के साथ फांक लें। इसके अलावा कच्चे टमाटर खाएं। संतरे का रस प्रतिदिन पिएं। पिसी हुई अजवायन और सौंफ का मिश्रण भोजन के बाद खाएं। रात को सोते समय गुनगुना पानी पीकर सोएं। सुबह उठकर तांबे के पात्र में रातभर से रखा पानी ही पिएं, लाभ मिलेगा।

चमत्कारिक औषधि है तुलसी


मितली आने, चक्कर आने, दस्त लगने या उल्टियां होने पर तुलसी के ताजे रस के गिलास में कालीमिर्च डालकर पिला दें। तुलसी के पत्तों का रस बनाने के लिए 10-20 पत्तियों को पानी के साथ सिलबट्टे पर पीस लें। स्वस्थ और सफेद दांत पाने के लिए तुलसी और नीबू के रस को मिलाकर दांतों की मालिश करें। यही रस चेहरे की कांति बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कान का तेज दर्द होने पर इसकी बूंदें रात को सोते समय कान में टपका लें। तुलसी की पत्तियों का एक गिलास रस दिल के लिए टॉनिक का काम करता है। इसे रोज सुबह पीना चाहिए। आंखों के संक्रमण यानी कंजक्टिवाइटिस से निपटने के लिए एक कटोरी में तुलसी की दो-तीन पत्तियां रात को भिगो दें। सुबह इससे आंख धो लें।

दांत दर्द के लिए कारगर उपचार


10 ग्राम बायविडंग और 10 ग्राम सफेद फिटकरी थोड़ी कूटकर तीन किलो पानी में उबालें। एक किलो बचा रहने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें। तेज दर्द में सुबह तथा रात को इस पानी से कुल्ला करने से दो दिन में ही आराम आ जाता है। कुछ अधिक दिन कुल्ला करने से दाँत पत्थर की तरह मजबूत हो जाते हैं। अमरूद के पत्ते के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और दाढ़ की भयानक टीस और दर्द दूर हो जाता है। प्रायः दाढ़ में कीड़ा लगने पर असहय दर्द उठता है। काढ़ा तैयार करने के लिए पतीले में पानी डालकर उसमें अंदाज से अमरूद के पत्ते डालकर इतना उबालें कि पत्तों का सारा रस उस पानी में मिल जाए और वह पानी उबाले हुए दूध की तरह गाढ़ा हो जाए। दांत-दाढ़ दर्द में अदरक का टुकड़ा कुचलकर दर्द वाले दांत के खोखले भाग में रखकर मुंह बंद कर लें और धीरे-धीरे रस चूसते रहें। फौरन राहत महसूस होगी।

नींबू के 10 घरेलू नुस्खे


शुद्ध शहद में नींबू की शिकंजी पीने से मोटापा दूर होता है।

नींबू के सेवन से सूखा रोग दूर होता है।

नींबू का रस एवं शहद एक-एक तोला लेने से दमा में आराम मिलता है।

नींबू का छिलका पीसकर उसका लेप माथे पर लगाने से माइग्रेन ठीक होता है।

नींबू में पिसी काली मिर्च छिड़क कर जरा सा गर्म करके चूसने से मलेरिया ज्वर में आराम मिलता है।

नींबू के रस में नमक मिलाकर नहाने से त्वचा का रंग निखरता है और सौंदर्य बढ़ता है।

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नौसादर को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद ठीक होता है।

नींबू के बीज को पीसकर लगाने से गंजापन दूर होता है।

बहरापन हो तो नींबू के रस में दालचीनी का तेल मिलाकर डालें।

10 आधा कप गाजर के रस में नींबू निचोड़कर पिएं, रक्त की कमी दूर होगी।

गेहूं : गुणों का खजाना


सामान्यतः लोग गेहूं को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूं औषधीय गुणों से भी भरपूर है।

खांसी- 20 ग्राम गेहूं के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खांसी जल्दी चली जाती है। 

दाहकता- 80 ग्राम गेहूं को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूं के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है। 

अस्थि भंग- एक मुठ्ठी गेहूं को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है। 

स्मरण शक्ति- गेहूं से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

घरेलू नुस्खे, खास आपके लिए

* पसीना अधिक आता हो तो पानी में फिटकरी डालकर स्नान करें। 

* गठिया के लिए कच्चे नारियल का पानी-अदरक का रस या नीबू का रस आधा चम्मच मिलाकर लेना चाहिए। चैरी का रस, पालक-टमाटर का रस फायदा करता है। कुनकुने पानी में नीबू का रस तुलसी सुधा, गेहूं के ज्वारे का रस, सलाद पत्ती का रस पीने से गठिया में राहत मिलती है। 

* यदि नींद न आने की शिकायत है, तो रात्रि में सोते समय तलवों पर सरसों का तेल लगाएं। 

* एक कप गुलाब जल में आधा नीबू निचोड़ लें, इससे सुबह-शाम कुल्ले करने पर मुंह की बदबू दूर होकर मसूड़े व दांत मजबूत होते हैं। 

* भोजन के साथ 2 केले प्रतिदिन सेवन करने से भूख में वृद्धि होती है। 

* आंवला भूनकर खाने से खांसी में फौरन राहत मिलती है। 
* 1 चम्मच शुद्ध घी में हींग मिलाकर पीने से पेटदर्द में राहत मिलती
 है।  

माइग्रेन भगाए, घरेलू उपाय


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सभी जानते हैं कि माइग्रेन में होने वाला सिरदर्द कितना तकलीफदायक होता है। यह दर्द अचानक ही शुरू होता है और अपने आप ही ठीक भी हो जाता है। हाथों के स्पर्श से मिलने वाला आराम और प्यार किसी भी दवा से ज्यादा असर करता है। 

* इस दर्द में अगर सिर, गर्दन और कंधों की मालिश की जाए तो यह इस दर्द से राहत दिलाने बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके लिए हल्की खुशबू वाले अरोमा तेल का प्रयोग किया जा सकता है। 

* एक तौलिये को गर्म पानी में डुबाकर, उस गर्म तौलिये से दर्द वाले हिस्सों की मालिश करें। कुछ लोगों को ठंडे पानी से की गई इसी तरह की मालिश से भी आराम मिलता है। इसके लिए आप बर्फ के टुकड़ों का उपयोग भी कर सकते हैं। 

* कपूर को घी में मिलाकर सिर पर हल्के हाथों से मालिश करें। मक्खन में मिश्री मिलाकर सेवन करें।

* नींबू का छिलका पीसकर उसका लेप माथे पर लगाने से माइग्रेन ठीक होता है।

अदरक हर मौसम में करें असर


अदरक व सौंठ हर मौसम में, हर घर के रसोई घर में प्रायः रहते ही हैं। इनका उपयोग घरेलू इलाज में किया जा सकता है।

* भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह बारीक कतर लें। इन चिप्स पर पिसा काला नमक बुरक कर खूब चबा-चबाकर खा लें फिर भोजन करें। इससे अपच दूर होती है, पेट हलका रहता है और भूख खुलती है।

* अदरक का एक छोटा टुकड़ा छीले बिना (छिलकेसहित) आग में गर्म करके छिलका उतार दें। इसे मुँह में रख कर आहिस्ता-आहिस्ता चबाते चूसते रहने से अन्दर जमा और रुका हुआ बलगम निकल जाता है और सर्दी-खाँसी ठीक हो जाती है।

* सौंठ को पानी के साथ घिसकर इसके लेप में थोड़ा सा पुराना गुड़ और 5-6 बूंद घी मिलाकर थोड़ा गर्म कर लें। बच्चे को लगने वाले दस्त इससे ठीक हो जाते हैं। ज्यादा दस्त लग रहें हों तो इसमें जायफल घिसकर मिला लें।

* अदरक का टुकड़ा छिलका हटाकर मुंह में रखकर चबाते-चूसते रहें तो लगातार चलने वाली हिचकी बन्द हो जाती है।

पत्तागोभी : एक लाजवाब औषधि


पायरिया : पत्तागोभी के कच्चे पत्ते 50 ग्राम नित्य खाने से पायरिया व दांतों के अन्य रोगों में लाभ होता है।

बाल गिरना : पत्तागोभी के 50 ग्राम पत्ते प्रतिदिन खाने से गिरे हुए बाल उग आते हैं।

घाव : इसका रस पीने से घाव ठीक होते हैं। इसके रस का आधा गिलास 5 बार पानी मिलाकर पीना चाहिए। घाव पर इसके रस की पट्टी बांधें।

परिणाम शूल : करमकल्ले का रस पीने से यह रोग ठीक हो जाता है। एक-एक कप तीन बार पिएं। इसके कच्चे पत्ते भी खा सकते हैं। इसका ताजा रस ही लाभ करता है, यह कम से कम दो सप्ताह पिएं।

चमकदार आंखों के लिए सरल नुस्खे


सुबह उठते ही प्रतिदिन ठंडे पानी से आंखें धोनी चाहिए। अथवा त्रिफला या नीम की पत्ती रात में पानी में भिगो दें, इस पानी को छानकर आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। 

सरसों के तेल से बना काजल लगाने और गुलाबजल का फाहा आंखों पर रखने से आंखें स्वच्छ रहती है। अधिक देर तक पढ़ते-लिखते रहने से आंखें दुखने लगती है। बीच-बीच में अपनी हथेलियों को हल्के से आंखों पर रखें। 

आंखों को बार-बार ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं, तिरछा और गोल घुमाकर आंखों का व्यायाम करें। हरी ताजी सब्जियां, गाजर, चुकंदर व दूध से बने पदार्थ घी आदि के सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

अजवाइन एक बहुउपयोगी औषधि


अजवाइन रुचिकारक एवं पाचक होती है। पेट संबंधी अनेक रोगों को दूर करने में सहायक होती है, जैसे- वायु विकार, कृमि, अपच, कब्ज आदि। अजवाइन में स्वास्थ्य सौंदर्य, सुगंध तथा ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व होते हैं। यह बहुत ही उपयोगी होती है।

* बरसात के मौसम में पाचन क्रिया के शिथिल पड़ने पर अजवाइन का सेवन काफी लाभदायक होता है। इससे अपच को दूर किया जा सकता है।

* अजवाइन मोटापे को कम करने में मदद करती है। अतः रात्रि में एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में भिगोएं। सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने पर लाभ होता है।

* मसूड़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूँदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है।

* अजवाइन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फाँकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढ़ना बंद हो जाएगा।

* आंतों में कीड़े होने पर अजवाइन के साथ काले नमक का सेवन करने पर काफी लाभ होता है।

सरल उपाय, एलर्जी से बचाए


धूल मिट्टी से नाक में एलर्जी हो जाती है। उपरोक्त परेशानियों में निम्नलिखित नुस्खे आजमाएं - 

सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीकर और मिश्री सभी द्रव्यों का चूर्ण 10-10 ग्राम, बीज निकाला हुआ मुनक्का 50 ग्राम, गोदंती हरताल भस्म 10 ग्राम तथा तुलसी के दस पत्ते सभी को मिलाकर खूब घोंटकर पीस लें और 3-3 रत्ती की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें। 

गोली सुबह व 2 गोली शाम को गर्म पानी के साथ तीन माह तक सेवन करें। ठंडे पदार्थ, बर्फ, दही, ठंडे पेय से परहेज करें। नाक की एलर्जी दूर हो जाएगी।

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय


तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है। 

लहसुन : 200 ग्राम लहसुन पीसकर उसमें 60 मिली शहद मिलाकर एक साफ-सुथरी शीशी में भरकर ढक्कन लगाएं और किसी भी अनाज में 31 दिन के लिए रख दें। 31 दिनों के बाद 10 ग्राम की मात्रा में 40 दिनों तक इसको लें। इससे यौन शक्ति बढ़ती है। 

जायफल : एक ग्राम जायफल का चूर्ण प्रातः ताजे जल के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही यौन दुर्बलता दूर होती है।

दालचीनी : दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है और यौन दुर्बलता दूर होती है।

खजूर : शीतकाल में सुबह दो-तीन खजूर को घी में भूनकर नियमित खाएं, ऊपर से इलायची- शक्कर डालकर उबला हुआ दूध पीजिए। यह उत्तम यौन शक्तिवर्धक है।

याददाश्त बढ़ाती है सौंफ - सौंफ से सुधारें सेहत



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सौंफ में विटामिन सी की जबर्दस्त मात्रा है और इसमें आवश्यक खनिज भी हैं जैसे कैल्शियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन और पोटेशियम। 

पेट की बीमारियों के लिए यह बहुत प्रभावी दवा है जैसे मरोड़, दर्द और गैस्ट्रिक डिस्ऑर्डर के लिए। 

दिलचस्प बात यह है कि सौंफ आपकी याददाश्त बढ़ाती है, निगाह तेज करती है, खांसी भगाती है और कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रण में रखती है। 

अगर आप चाहते हैं कि आपका कोलेस्ट्रॉल स्तर न बढ़े तो खाने के लगभग 30 मिनट बाद एक चम्मच सौंफ खा लें। 

सूखी, रोस्टेड और कच्ची सौंफ को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे खाने के बाद खाएं। इससे पाचनक्रिया बेहतर रहेगी और आप हल्का महसूस करेंगे। 

अगर आप एक चम्मच सौंफ 2 कप पानी में उबाल लें और इस मिश्रण को दिन में दो-तीन बार लें तो आपकी आंतें अच्छा महसूस करेंगी और खांसी भी लापता हो जाएगी। 

सौंफ की पत्तियों में खांसी संबंधी परेशानियां जैसे दमा व ब्रोन्काइटिस को दूर रखने की भी क्षमता होती है। 

सौंफ को अंजीर के साथ खाएं और खांसी व ब्रोन्काइटिस को दूर भगाएं। मासिक चक्र को नियमित बनाने के लिए सौंफ को गुड़ के साथ खाएं।

चमत्कारी सौंफ के सेहत के लिए फायदे कुछ इस प्रकार हैं- 

भोजन के बाद रोजाना 30 मिनट बाद सौंफ लेने से कॉलेस्ट्रोल काबू में रहता है। 

5-6 ग्राम सौंफ लेने से लीवर और ंखों की ज्योति ठीक रहती है। अपच संबंधी विकारों में सौंफ बेहद उपयोगी है। बिना तेल के तवे पर तली हुई सौंफ और बिना तली सौंफ के मिक्चर से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है। 

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दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है। 

अस्थमा और खांसी के उपचार में सौंफ सहायक है। 

कफ और खांसी के इलाज के लिए सौंफ खाना उपयोगी है। 

गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है। 

यह शिशुओं के पेट और उनके पेट के अफारे को दूर करने में बहुत उपयोगी है।

एक चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबलने दें और 20 मिनट तक इसे ठंडा होने दें। इससे शिशु के कॉलिक का उपचार होने में मदद मिलती है। 

शिशु को एक या दो चम्मच से ज्यादा यह घोल नहीं देना चाहिए। 

सौंफ के पावडर को शकर के साथ बराबर मिलाकर लेने से हाथों और पैरों की जलन दूर होती है। भोजन के बाद 10 ग्राम सौंफ लेनी चाहिए।

प्याज के प्रभावी घरेलू नुस्खे

रक्त विकार को दूर करने के लिए 50 ग्राम प्याज के रस में 10 ग्राम मिश्री तथा 1 ग्राम भूना हुआ सफेद जीरा मिला लें। 

कब्ज के इलाज के लिए भोजन के साथ प्रतिदिन एक कच्चा प्याज जरूर खाएं। 

यदि अजीर्ण की शिकायत हो तो प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उसमें एक नीबू निचोड़ लें या सिरका डाल लें तथा भोजन के साथ इसका सेवन करें। 




बच्चों को बदहजमी होने पर उन्हें प्याज के रस की तीन-चार बूंदें चटाने से लाभ होता है। 

अतिसार के पतले दस्तों के इलाज के लिए एक प्याज पीसकर रोगी की नाभि पर लेप करें या इसे किसी कपड़े पर फैलाकर नाभि पर बांध दें। 

हैजे में उल्टी-दस्त हो रहे हों तो घंटे-घंटे बाद रोगी को प्याज के रस में जरा सा नमक डालकर पिलाने से आराम मिलता है। 

प्रत्येक 15-15 मिनट बाद 10 बूंद प्याज का रस या 10-10 मिनट बाद प्याज और पुदीने के रस का एक-एक चम्मच पिलाने से भी हैजे से राहत मिलती है।

सफेद बालों से कैसे पाएं छुटकारा


पिसी हुई सूखी मेहंदी एक कप, कॉफी पावडर पिसा हुआ 1 चम्मच, दही 1 चम्मच, नीबू का रस 1 चम्मच, पिसा कत्था 1 चम्मच, ब्राह्मी बूटी का चूर्ण 1 चम्मच, ंवला चूर्ण 1 चम्मच और सूखे पोदीने का चूर्ण 1 चम्मच। इतनी मात्रा एक बार प्रयोग करने की है। इसे एक सप्ताह में एक बार या दो सप्ताह में एक बार अवकाश के दिन प्रयोग करना चाहिए।

सभी सामग्री पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर भिगो दें और दो घंटे तक रखा रहने दें। पानी इतना लें कि लेप गाढ़ा रहे, ताकि बालों में लगा रह सके। यदि बालों में रंग न लाना हो तो इस नुस्खे से कॉफी और कत्था हटा दें। पानी में दोघंटे तक गलाने के बाद इस लेप को सिर के बालों में खूब अच्छी तरह, जड़ों तक लगाएं और घंटे भर तक सूखने दें।

इसके बाद बालों को पानी से धो डालें। बालों को धोने के लिए किसी भी प्रकार के साबुन का प्रयोग न करके, खेत या बाग की साफ मिट्टी, जो कि गहराई से ली गई हो, पानी में गलाकर, कपड़े से पानी छानकर, इस पानी से बालों को धोना चाहिए। मिट्टी के पानी से बाल धोने पर एक-एक बाल खिल जाता है जैसे शैम्पू से धोए हों।

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