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Tuesday, 13 March 2018
दही में नमक डाल कर न खाऐं
कभी भी आप दही को नमक के साथ मत खाईये। दही को अगर खाना ही है, तो हमेशा दही को मीठी चीज़ों के साथ खाना चाहिए, जैसे कि गुड के साथ, बूरे के साथ आदि।
इस क्रिया को और बेहतर से समझने के लिए आपको बाज़ार जाकर किसी भी साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की दूकान पर जाना है, और वहां से आपको एक लेंस खरीदना है, अब अगर आप दही में इस लेंस से देखेंगे तो आपको छोटे-छोटे हजारों बैक्टीरिया नज़र आएंगे।
ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में आपको इधर-उधर चलते फिरते नजर आएंगे. ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए, क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे अंदर एंजाइम प्रोसेस अच्छे से चलता है।
*हम दही केवल बैक्टीरिया के लिए खाते हैं।*
दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं का घर माना जाता है, अगर एक कप दही में आप जीवाणुओं की गिनती करेंगे तो करोड़ों जीवाणु नजर आएंगे।
अगर आप मीठा दही खायेंगे तो ये बैक्टीरिया आपके लिए काफ़ी फायदेमंद साबित होंगे।
*वहीं अगर आप दही में एक चुटकी नमक भी मिला लें तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे* और उनकी लाश ही हमारे अंदर जाएगी जो कि किसी काम नहीं आएगी।
अगर आप 100 किलो दही में एक चुटकी नामक डालेंगे तो दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जायेंगे क्योंकि नमक में जो केमिकल्स है वह जीवाणुओं के दुश्मन है।
आयुर्वेद में कहा गया है कि दही में ऐसी चीज़ मिलाएं, जो कि जीवाणुओं को बढाये ना कि उन्हें मारे या खत्म करे।
दही को गुड़ के साथ खाईये, गुड़ डालते ही जीवाणुओं की संख्या मल्टीप्लाई हो जाती है और वह एक करोड़ से दो करोड़ हो जाते हैं थोड़ी देर गुड मिला कर रख दीजिए।
बूरा डालकर भी दही में जीवाणुओं की ग्रोथ कई गुना ज्यादा हो जाती है।
मिश्री को अगर दही में डाला जाये तो ये सोने पर सुहागे का काम करेगी।
सुना है कि भगवान कृष्ण भी दही को मिश्री के साथ ही खाते थे।
पुराने जमाने में लोग अक्सर दही में गुड़ या मिश्री डाल कर दिया करते थे।


Thursday, 18 January 2018
मन
मन की वजह से ही सभी बुरे कार्य उत्पन्न होते हैं। अगर मन को ही परिवर्तित कर दिया जाए तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?


लक्ष्य
जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गया है, उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है | जो थोड़ा इधर, थोड़ा उधर हाथ मारते हैं, वे कोई लक्ष्य पूर्ण नहीं कर पाते | वे कुछ क्षणों के लिए बड़ा जोश दिखाते है; किन्तु वह शीघ्र ठंडा हो जाता है | – स्वामी विवेकानंद.
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